भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्व में अनुच्छेद 45 के आधीन राज्य का कर्तव्य है कि राज्य 14 वर्ष तक के सभी बालकों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा दे लेकिन यह एक नीति निर्देशक तत्व था न कि व्यक्ति का मूल अधिकार लेकिन मोहनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शिक्षा का अधिकार एक मूल अधिकार है एवं यह अधिकार प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में निहित है। लेकिन उन्नीकृष्णन मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शिक्षा का अधिकार मूल अधिकार है एवं निःशुल्क शिक्षा एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों को प्राप्त है।
इसी संदर्भ में संसद द्वारा निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम,2009 पारित किया गया अब इस अधिनियम के अंतर्गत राज्य के सम्पूर्ण शासकीय स्कूल में बालको को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा दी जा रही है एवं निजी स्कूलों में 25℅ बालको को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है जानते हैं भारतीय संविधान में इस अधिकार को कब मौलिक अधिकार माना।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 21(क) की परिभाषा:-
भारतीय संविधान के 86वें संविधान संशोधन अधिनियम,2002 द्वारा एक नया अनुच्छेद 21क जोड़ा गया जो यह उपबन्धित करता है कि राज्य 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के सभी बालको को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करवाएगा एवं यह नागरिकों का मौलिक अधिकार होगा।
शिक्षा के अधिकार से छोटे गांवों में बच्चों को वंचित नहीं किया जा सकता है :-सुप्रीम कोर्ट।
एक महत्वपूर्ण वाद एन. कोमोन बनाम मणिपुर राज्य मामले ने उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया कि ऐसा गाब जहाँ आबादी कम है एवं 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को दूर गाब के स्कूल में भेजा जा रहा है जिससे वो जाने में असमर्थ है या उनको दूर पहुचने की सुविधाएं उपलब्ध नहीं है तब सरकार का कर्तव्य है कि छोटे गाब में ही स्कूल खोला जाए क्योंकि शिक्षा प्राप्त करना बालकों का मोलिक अधिकार के साथ यह सरकार का कर्तव्य अनुच्छेद 39,41,42 एवं 51 क(ट) के अंतर्गत हैं।
उपर्युक्त निर्णय के आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि छोटे गाब के स्कूलों को सरकार मनमाने ढंग से किसी दूर शहर के स्कूलो में मर्ज नहीं कर सकती है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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