संगठन, यूनियन, एसोसिएशन, संघ एवं संस्थाओं के माध्यम से कार्य करने की प्रणाली अत्यंत प्राचीन है। कहते है कि एक विचारधारा वाले व्यक्ति शुरू से ही एक साथ मिलकर कार्य करने में विश्वास करते हैं। इसका मुख्य कारण संगठन की शक्ति, बन्धुत्व एवं सहयोग बना रहता है जो कार्य एक व्यक्ति नहीं कर सकता वह कार्य संघ या संगठन के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। यही कारण है कि संविधान में भी संघ या संगठन, समितियां बनाने तथा उन्हें निरंतर चालू रखने की परंपरा को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है जानिए।
भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 19(1)(ग) की परिभाषा
भारत के समस्त नागरिक अपनी स्वेच्छा से कोई भी संघ,संस्था, संगम, सहकारी समितियां एवं कंपनी, सोसायटी, साझेदारी संघ, श्रमिक संघ, कोई संगठन राजनीतिक दल आदि बनाने, चालू रखने, समाप्त करने आदि के लिए स्वतंत्र हैं।
संस्था, सोसायटी आदि के सदस्य बनने का अधिकार मूल अधिकार नहीं है जानिए:-
सुभाष बेहर बनाम स्टेट ऑफ उत्तराखंड मामले में उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया कि भारत के नागरिकों को किसी सोसायटी, संस्था का सदस्य बनने का अधिकार मूल अधिकार नहीं है। आगे कहा कि संघ या संस्था की स्थापना करने वाला व्यक्ति उसका मूल संरक्षण सदस्य होता है उसकी इच्छा के विपरीत किसी व्यक्ति को उस संघ, संस्था पर न थोपा जा सकता है और न उनको उनके साथ कार्य करने के लिए विवश किया जा सकता है।
संघ, संगठन, संस्था आदि बनाने पर राज्य कब प्रतिबंध लगा सकता है जानिए:-
कोई भी व्यक्ति मनमाने तौर पर मनमाने कार्य के लिए किसी संघ, संस्था आदि का निर्माण नहीं कर सकता है इसके लिए कुछ शर्तें निरूपित की गई है:-
1. संस्था या संगठन आदि द्वारा देश की सम्प्रुभता,एकता एवं अखंडता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होना चाहिए।
2. संस्था या संगठन आदि लोकशान्ति, लोक व्यवस्था बनाने वाला होना चाहिए।
3. संगठन या संस्था हमेशा अच्छे कार्य के लिए एवं सदाचार होना चाहिए।
सरकार कब संस्था या संगठन आदि को असंवैधानिक घोषित कर सकती है।-
महत्वपूर्ण जजमेंट【स्टेट ऑफ मद्रास बनाम वी. जी.राव】- उक्त मामले में न्यायालय द्वारा कहा गया कि सरकार को यह अधिकार है कि यदि कोई संघ,संस्था आदि लोकशान्ति एवं लोक व्यवस्था के लिए घातक हो तो उसे अधिसूचना द्वारा अवैध घोषित कर सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि संघ या संस्था का कार्य लोकशान्ति या लोक व्यवस्था भंग करने का है इसका पता लगाना केवल न्यायालय का कार्य हैं न की सरकार द्वारा गठित सलाहकारी बोर्ड का। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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