सभा एवं सम्मेलन करना लोकतंत्र में एक सहज एवं स्वाभाविक बात है।इसके माध्यम से एक दूसरे में विचारों का आदान प्रदान किया जाता है।इसी कारण कभी-कभी इसे वाक़् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जोड़ दिया जाता हैं या कहे तो दोनो एक दूसरे के पूरक होते हैं।
सभा एवं सम्मेलन विचारों की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम समझा जाता है क्योंकि प्रकाशन को छोड़कर विचारों की अभिव्यक्ति का दूसरा कोई अच्छा माध्यम यही है इसलिए भारतीय संविधान में इसे मौलिक अधिकार के रूप में सम्मिलित किया गया है जानिए।
भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 का अनुच्छेद 19(1)(ख) की परिभाषा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ख) भारतीय नागरिकों को शांतिपूर्ण तरीके से बिना हथियार के सभा या सम्मलेन की स्वतंत्रता प्रदान करता है, इसमें सार्वजनिक सम्मलेन, प्रदर्शन, जुलूस, सभाएं को भी सम्मिलित किया गया है।
सभा एवं सम्मेलन के अधिकार की शर्तें:-
1. सभा या सम्मेलन शांतिपूर्ण होना चाहिए।
2. यह बिना हथियारों के होना चाहिए।
3. यह देश(राज्य) की प्रभुता, एकता और अखंडता एवं लोक-व्यवस्था,लोकशान्ति के प्रतिकूल नहीं होना चाहिए।
अर्थात उपर्युक्त शर्तो के अधीन भारत का प्रत्येक नागरिक सभा, सम्मेलन, प्रदर्शन आदि कर सकता है एवं यह उनका संवैधानिक अधिकार होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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