भोपाल। मध्यप्रदेश में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर शायद अकेले ऐसे कैबिनेट मंत्री हैं जिन्हें अपने ही डिपार्टमेंट के अधिकारी और कर्मचारियों के ट्रांसफर करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। मुख्य सचिव ने स्पष्ट कर दिया है कि बिजली कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रांसफर कंपनियों के संचालक मंडल द्वारा निर्धारित डेलिगेशन आफ पावर के तहत ही किए जाएंगे।
पूर्व में कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ऊर्जा मंत्री को यह अधिकार दे दिए थे कि वह बिजली कंपनी के अधिकारी और कर्मचारियों के ट्रांसफर हेतु अनुमोदन करेंगे। उनके अनुमोदन के बिना कोई ट्रांसफर नहीं होगा। प्रद्युम्न सिंह तोमर चाहते हैं कि कमलनाथ द्वारा स्थापित की गई परंपरा का पालन किया जाएगा परंतु उनके अपने विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे का कहना है कि यदि ऐसा हुआ तो कॉरपोरेट गवर्नेंस के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी।
दरअसल बिजली कंपनियों के कर्मचारी, सरकारी कर्मचारी नहीं है बल्कि सरकारी उपक्रम के कर्मचारी हैं। कॉरपोरेट गवर्नेंस के तहत ऐसे उपक्रमों को पॉलिटिकल डिस्टरबेंस से दूर रखा गया है। ताकि ब्यूरोक्रेट्स अपनी क्षमता का पूरा उपयोग करते हुए प्रदर्शन कर सकें। सत्ताधारी दल के लोग चाहते हैं कि सरकारी उपक्रमों में भर्ती से लेकर रिटायरमेंट तक कर्मचारियों का कंट्रोल मंत्रियों के हाथ में होना चाहिए।
पिछले दिनों इस मामले में ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस को नोटशीट लिखकर मार्गदर्शन मांगा था। बताया था कि इससे पहले तक मुख्यमंत्री या मंत्रियों के अनुशंसित प्रकरणों को सिर्फ विचारार्थ बिजली कंपनियों को भेजा जाता था। यदि पूर्व सरकार के निर्देर्शों (ऊर्जा मंत्री को तबादले का अधिकार देने संबंधी) का पालन किया जाता है कि बिजली कंपनियों की कार्यप्रणाली पर विपरीत असर पड़ेगा। इससे कार्पोरेट गवर्नेंस का उद्देश्य खत्म हो जाएगा।
मुख्य सचिव ने यह विषय समन्वय (मुख्यमंत्री से आदेश प्राप्त करने का मुद्दा) का नहीं है। इस प्रकार स्पष्ट हो गया कि ऊर्जा मंत्री को बिजली कंपनियों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के ट्रांसफर करने का अधिकार नहीं है। वह अन्य नेताओं और मंत्रियों की तरह सिर्फ अनुशंसा कर सकते हैं।