नई दिल्ली। मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकारी अधिकारी विजय राजामोहन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील प्रस्तुत की गई थी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपील को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि अभियोजन की अनुमति अथवा प्रक्रिया में देरी के कारण कर्मचारी पर लगे हुए आरोप रद्द नहीं होंगे, अलबत्ता देरी करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
विजय राजा मोहन के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था। उनके खिलाफ अभियोजन की मंजूरी नियम अनुसार निर्धारित 4 महीने बीत जाने के बाद 1 साल और 10 महीने देरी से दी गई थी। सरकारी अधिकारी का कहना था कि 4 महीने के भीतर अभियोजन की मंजूरी दिया जाना अनिवार्य प्रावधान है। इसका उल्लंघन हो गया है इसलिए उनके खिलाफ लगाए गए आरोप रद्द कर दिए जाने चाहिए।
मद्रास हाई कोर्ट ने उनकी मांग ठुकरा दी तब सरकारी अधिकारी विजय राजा मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और पीएस नरसिम्हा ने स्पष्ट किया कि अभियोजन की मंजूरी में देरी के लिए, देरी करने वाले अधिकारी को दंडित किया जा सकता है परंतु इस प्रकार की देरी के कारण आरोप रद्द नहीं किया जा सकता।