अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारक) अधिनियम, 1989 भारतीय दण्ड विधान की एक मूल विधि है। यह कानून उन व्यक्ति के विरुद्ध अपराध होता है जो व्यक्ति अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के सदस्य नहीं है एवं उक्त वर्ग के व्यक्ति पर अत्याचार करते हैं। इस कानून के सभी अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं एवं अग्रीम जमानत भी मुश्किल होता है।
आज का सवाल यह है कि किस सामान्य वर्ग का व्यक्ति (जो sc-st वर्ग का सदस्य नहीं है) उस पर पुलिस की FIR में अनुसूचित जाति एवं जनजाति एक्ट, 1989 की धारा के अंतर्गत मामला कायम हो गया है तब उसे न्यायालय द्वारा कब निरस्त कर दिया जाता है जानिए सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय।
पाटन जमाल वाली बनाम आंध्रप्रदेश राज्य (निर्णय वर्ष 2021):-
उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम,1989 की धारा में आरोपी तभी अपराधी मना जाएगा, jab अपराध करने वाले व्यक्ति (आरोपी) को पता हो कि पीड़ित व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग का सदस्य था। अगर वह यह नहीं जानता था तो उस व्यक्ति पर SC-ST act,1989 की धाराओं के अंतर्गत मामला नहीं बनेगा।
उक्त मामले में एक महिला आरोपी पर 376(1) बलात्कार का आरोपी लगाती है एवं आरोपी के विरुद्ध अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) की धारा 3(2)(v) के अंतर्गत भी मामला कायम होता है। आरोपी व्यक्ति यह साबित करने में सफल हो जाता है की वह यह नहीं जानता था कि पीड़ित महिला विशेष वर्ग की थी।
तब न्यायालय आरोपी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376(1) के अंतर्गत दण्डित करने का निर्णय देता है एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवर्तमान), 1989 की धारा के दण्डादेश को निरस्त कर देता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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