हम सभी जानते हैं कि भारत को सन 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति और 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। यानी सन 1947 से लेकर 1950 तक भारत देश के गठन की सभी प्रक्रियाएं पूरी हो गई थी। फिर क्या कारण है कि मध्य प्रदेश का गठन 1956 में हुआ। आइए जानते हैं:-
आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सबसे पहले उन राजाओं के राज्यों को भारत संघ में शामिल किया जो हर्ष पूर्वक भारत में शामिल होना चाहते थे या फिर एक बार की मुलाकात में हस्ताक्षर करने को तैयार थे। इसके बाद भारत के सामने हैदराबाद और कश्मीर जैसी चुनौतियां आ गई। हैदराबाद से निपटने के लिए शक्ति का उपयोग करना पड़ा और कश्मीर की कहानी आप जानते ही हैं।
इस सब उथल-पुथल के बीच विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला, सतपुड़ा के जंगल, नर्मदा, सिंध और चंबल आदि कई नदियों के किनारे वाला एक हिस्सा ऐसा था जो नक्शे में भारत के मध्य क्षेत्र में दिखाई दे रहा था परंतु यहां के 74 राजा सदियों से आपस में लड़ते चले आ रहे थे।
भोपाल के नवाब को छोड़कर ये भी भारत संघ में शामिल होने को तैयार थे परंतु एक राज्य का हिस्सा बनने को तैयार नहीं थे। ग्वालियर के राजा तो जिद पर अड़ गए थे कि उनकी रियासत स्वतंत्र प्रदेश होगी और किसी अन्य प्रदेश का हिस्सा नहीं बनेगी। इतना ही नहीं वो स्वयं अपने प्रदेश के प्रमुख होंगे। इसी शर्त के चलते उन्हे मध्यभारत का राजप्रमुख बनाया गया था।
कुल मिलाकर ये सभी राजा अपने पड़ौसियों के प्रति इतनी अधिक शत्रुता का भाव रखते थे कि इसके लिए स्वयं का अस्तित्व ही समाप्त करने को तैयार थे। ऐसे राजाओं पर बल प्रयोग उचित नहीं था और स्पष्ट था कि पाकिस्तान इनका फायदा नहीं उठा पाएगा। इसलिए पहले स्थिति को सामान्य होने दिया गया और सभी रियासतों को भारत में शामिल कर लिया गया। फिर प्रधानमंत्री ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया और 1 नवम्बर 1956 को पड़ौसियों से लड़ने वाले भारत की सभी रियासतों को नए सिरे से राज्यों में शामिल किया। इसी प्रक्रिया में मध्यप्रदेश का गठन हुआ।