धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर लोकशान्ति या लोक व्यवस्था के अंतर्गत पिछले लेख में हमने आपको बताया था कि सरकार उस पर कब रोक लगा सकती है, आज हम इसका दूसरा अपवाद आपको बताएंगे।
वैसे तो प्रत्येक धर्म का अपना-अपना अधिकार होता है कि वह परंपरागत प्रथा (लौकिक) तरीके से अपने धर्म का अनुष्ठान करे लेकिन कुछ शारीरिक लौकिक धार्मिक क्रियाएं ऐसी होती है जिसको संविधान एवं सरकार अनुमति नहीं देता है जानिए।
भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 25(2) (क) की परिभाषा
ऐसी धार्मिक क्रियाएं एवं धार्मिक आचरण जिसमे धार्मिक तत्व कम एवं सांसारिक तत्व अधिक होते हैं एवं कौन सी क्रियाएं धार्मिक कौन सी क्रियाएं धर्म से सम्बंधित नहीं है इसका पता लगाना न्यायालय का कर्त्तव्य होता है जो लौकिक क्रियाएं धार्मिक क्रियाएं नहीं है उस पर राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाना धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा। इसको हम दो महत्वपूर्ण जजमेंट द्वारा सरल भाषा में समझते हैं जानिए।
1. हनीफ मोहम्मद कुरेशी मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया था की बकरीद पर मुस्लिम समुदाय द्वारा गाय को काटना मुस्लिम धर्म का आवश्यक तत्व नहीं है अतः सरकार द्वारा ऐसी छूट देने असंवैधानिक हैं।
इसी प्रकार आचार्य जगदीश्वरा नन्द मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है कि आनंदमार्गियो द्वारा सार्वजनिक स्थानों में खतरनाक शास्त्रों, कपालों एवं जलती हुई मशालों को लेकर तांडव नृत्य करना यह धर्म की अतिआवश्यक क्रियाएं नहीं है यह भी असंवैधानिक हैं।
उपर्युक्त दोनों सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से स्पष्ट होता है की कौनसी लौकिक क्रियाएं सही है कौनसी गलत आर्थत वैध या अवैध इसका निर्धारण न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा न की व्यक्ति विशेष द्वारा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com