यह तो सभी जानते हैं कि ग्वालियर एक बेहद प्राचीन शहर है। राजा सूरज सेन ने जहां सबसे पहले एक बावड़ी का निर्माण कराया और उसके बाद समय के साथ कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्माण हुए। एक समय ऐसा भी आया जब ग्वालियर, भारत के सबसे आधुनिक शहरों में से एक था लेकिन यह बड़ी मजेदार जानकारी है कि मुगल शासन काल में ग्वालियर का उपयोग सिर्फ एक राजकीय कारावास के रूप में किया गया।
ग्वालियर का इतिहास- कब से कब तक है दिल्ली के अधीन रहा
1232 ईस्वी में पहली बार ग्वालियर, दिल्ली के शासक इल्तुतमिश के अधिकार में गया। वीरसिंहदेव ने मौका पाकर इसे दिल्ली से मुक्त करा लिया था लेकिन राजा मानसिंह की मृत्यु के बाद दिल्ली के इब्राहीम लोदी ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया। अब तक ग्वालियर एक बेहद भव्य और शक्तिशाली राज्य बन चुका था। दिल्ली के तख्त पर इब्राहिम लोधी के बाद मुगलों की सत्ता शुरू हुई। हुमायूं को भारत से खदेड़ने के बाद शेरशाह सूरी ने ग्वालियर को अपने शासन में मिला लिया। इसके बाद फिर मुगलों के शासन में चला गया और 200 साल तक ग्वालियर इलाका मुगलों का राजकीय कारावास रहा।
ग्वालियर में खाने में जहर मिलाकर राजनीतिक कैदियों की हत्या की जाती थी
मुगल शासन के राजनीतिक कैदियों को ग्वालियर में रखा जाता था। यह एक प्रकार की खुली जेल थी। यहां राजनीतिक कैदियों को कुछ दूरी तक घूमने फिरने की स्वतंत्रता थी। उनसे मजदूरी नहीं करवाई जाती थी एवं उन्हें स्वादिष्ट भोजन दिया जाता है। राजनीतिक कैदियों को उनकी हैसियत के हिसाब से आवास आवंटित किए जाते थे और कई बार दिल्ली का हुकुम आने के बाद उनके खाने में जहर मिलाकर उनकी हत्या कर दी जाती थी।
खाने में जहर से सबसे ज्यादा हत्याएं ग्वालियर में की गई
इसी समय से ग्वालियर के इतिहास में खाने में जहर मिलाकर हत्या करने का चलन प्रारंभ हुआ जो आजादी के बाद भी बरकरार रहा। 21वीं सदी की शुरुआत तक मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा डकैतों के खाने में जहर मिलाकर उनका एनकाउंटर किया गया एवं नशीली दवाएं मिलाकर उन्हें जिंदा गिरफ्तार किया गया।