भारत के चौराहों पर अक्सर महान व्यक्तियों की मूर्तियां लगाई जाती हैं। कुछ मूर्तियां प्राचीन काल के राजाओं और योद्धाओं की होती हैं। इन सभी मूर्तियों में कुछ खास किस्म के अंतर होते हैं। किसी योद्धा के घोड़े के दोनों पैर ऊपर होते हैं तो किसी का एक पैर ऊपर होता है। कभी कोई मूर्ति ऐसी भी दिखाई देती है जिसमें योद्धा के चारों पैर जमीन पर होते हैं। सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है। क्या इसके पीछे कोई लॉजिक है, या मूर्ति बनाने की मर्जी पर डिपेंड करता है। इस प्रश्न का उत्तर भारत सरकार के कर्मचारी श्री दिव्यांश जायसवाल (जिन्हें इतिहास की किताबें पढ़ने का शौक है) ने बड़ी ही सरल शब्दों में दिया है।
योद्धा की मूर्ति में घोड़े की दोनों टांगें हवा में क्या संदेश देती है
यदि आप देखते हैं कि किसी मूर्ति में योद्धा के घोड़े की दोनों टांगें हवा में हैं तो इसका तात्पर्य होता है कि यह योद्धा रणभूमि में दुश्मन से युद्ध करते हुए शहीद हुआ था। यह एक ऐसा महान योद्धा है जिसने रणभूमि में प्राण त्यागे।
योद्धा की मूर्ति में घोड़े की एक टांग हवा में क्या संदेश देती है
यदि किसी महान योद्धा की मूर्ति में उसके घोड़े की एक टांग हवा में और दूसरी टांग जमीन पर है तो इसका मतलब यह है कि यह योद्धा रणभूमि में युद्ध के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गया था और युद्ध के दौरान शरीर में लगे घाव के कारण इस योद्धा की मृत्यु हुई है।
योद्धा की मूर्ति में घोड़े की चारों टांगे जमीन पर क्या संकेत देती हैं
यदि किसी महान योद्धा के घोड़े कि चारों पैर जमीन पर हैं, तो इसका मतलब है इस योद्धा की मृत्यु ना तो युद्ध भूमि में हुई है और ना ही रणभूमि में घायल होने की वजह से हुई है बल्कि इस महान योद्धा की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई है। योद्धा ने सफलतम जीवन जिया और सामान्य मृत्यु को प्राप्त किया।