खजाने की रक्षा के लिए दुनिया भर में किले बनाए गए लेकिन मध्यप्रदेश में एक ऐसा किला मौजूद है जो गायों की रक्षा के लिए बनाया गया था। इसके लोगों को भगवान श्री कृष्ण के वंशज आशा अहीर द्वारा बनाया गया। यह किला इतना मजबूत और सुरक्षित है कि इसे कभी कोई जीत नहीं पाया। अकबर जैसा राजा भी 10 सालों तक किले पर हमला करता रहा परंतु जीत नहीं पाया।
मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक किलो की सूची में इस किले को असीरगढ़ के किले के नाम से दर्ज किया गया है। यह बुरहानपुर जिले में स्थित है। महाभारत के युद्ध के बाद यही क्षेत्र गुरु द्रोणाचार्य के अमर पुत्र अश्वत्थामा की साधना स्थली बना। कहते हैं कि आज भी अश्वत्थामा असीरगढ़ के क्षेत्र में भ्रमण करते हैं। एक सुरंग के माध्यम से बुरहानपुर में स्थित गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के समीप निकलते हैं और ताप्ती नदी में स्नान करते हैं। इसके बाद गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करते हैं और वापस चले जाते हैं। उनकी पूजा के फूल सुबह पुजारी और भक्तों को रखे हुए मिलते हैं।
प्राचीन कथाओं के अनुसार यह निश्चित है कि यह क्षेत्र अश्वत्थामा की साधना स्थली है परंतु इसे किले का रूप एक यदुवंशी द्वारा दिया गया। उनका नाम आशा अहीर था। वह राजा नहीं थे परंतु उनके पास हजारों की संख्या में गौधन था। 15 वीं शताब्दी में जब गायों की रक्षा का प्रश्न उपस्थित हुआ तो आशा ही नहीं इसी क्षेत्र में गायों को सुरक्षित रखने के लिए किलेबंदी शुरू की। बलुआ पत्थर और सूर्खी-चूना से अकेले-अकेले को बांधना शुरू किया। इसीलिए इसके लिए को आशा अहीर का गढ़ कहा गया। समय के साथ उच्चारण बदलता गया और आज इसे असीरगढ़ का किला कहा जाता है।
इस किले पर फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के एक सिपाही मलिक ख़ाँ के पुत्र नसीर ख़ाँ फ़ारूक़ी, फिर अकबर, फिर मराठा और फिर अंग्रेजों का अधिकार रहा परंतु कोई भी इसके लिए को युद्ध में जीत नहीं पाया। अकबर की सेना 10 साल तक इस किले के बाहर तैनात रही और लगातार गोला बारूद से हमला करती रही परंतु ना तो किले की दीवार तोड़ पाए और ना ही किले के अंदर मौजूद सेना की रसद (भोजन आदि के प्रबंध) रोक पाए।
यह किला आज भी अभेद है। 15 वी शताब्दी से लेकर भारत की स्वतंत्रता तक, जिसने भी भारत पर शासन किया वह हमेशा असीरगढ़ के किले को देखने के लिए लालायित रहा। आज भी दुनिया भर के पर्यटक इसे देखने के लिए आते हैं।