भारतीय संविधान के 44 वे संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा अनुच्छेद 31 से संपत्ति के मौलिक अधिकार को हटा दिया गया था एवं इस अधिकार को मौलिक अधिकार से हटा कर एक संवैधानिक (कानूनी) अधिकार बना दिया गया। आज हम आपको सरल भाषा में बताते हैं कि क्या है संपत्ति का कानूनी अधिकार एवं कब यह लागू होता है जानिए।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 300 (क) की परिभाषा
किसी भी व्यक्ति को विधिक अधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है अर्थात राज्य किसी भी व्यक्ति को विधि के अंतर्गत उसकी संपत्ति से वंचित कर सकता। यहाँ विधि का तात्पर्य है विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि। किसी कार्यपालिका के आदेश से नहीं न ही किसी पुलिस द्वारा कोई जारी आदेश से, व्यक्ति को अपनी संपत्ति से वंचित किया जा सकता है।
साधारण शब्दों में कहें तो किसी भी व्यक्ति का अपनी स्वंय की संपत्ति पर अब मौलिक अधिकार नहीं है यह सिर्फ अब कानूनी अधिकार है और सरकार (विधानमंडल) विधि बनाकर सार्वजनिक प्रयोजन, जनता के हित संरक्षण, लोक प्रोयोजन, सार्वजनिक लोकनिर्माण आदि के लिए संपति पर अधिग्रहण करने का अधिकार रखती है लेकिन सरकार का यह कार्य लोकहित में होना आवश्यक है एवं संपत्ति के एवज में भूमि स्वामी को उचित प्रतिकर (मुआवजा) दिया जाना चाहिए। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com