नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक बहुप्रतीक्षित मामले में फैसला सुनाया। अनारक्षित जातियों के निर्धन नागरिकों के लिए निर्धारित किए गए EWS आरक्षण को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती को खारिज कर दिया है यानी ईडब्ल्यूएस आरक्षण को मान्य कर दिया गया है।
EWS आरक्षण विरोधी क्या कह रहे थे
केंद्र सरकार ने 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की है। इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया था। दलील दी गई थी कि सरकार पिछले दरवाजे से आरक्षण की मूल अवधारणा को खत्म कर रही है। सवाल उठाया गया था कि आर्थिक आधार पर वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है।
EWS आरक्षण के समर्थन में सरकार ने क्या तर्क दिया
तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने 103वें संविधान संशोधन विधेयक का बचाव करते हुए कहा था कि इसके जरिए दीया गया आरक्षण अलग है। उन्होंने साफ किया कि ये सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया है। इसलिए ये कहना सही नहीं होगा कि संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। इसके तहत किसी दूसरी श्रेणी के आरक्षण को कम नहीं किया गया है।
50% के अतिरिक्त 10% EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला पढ़िए
ईडब्ल्यूएस कोटे की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने EWS आरक्षण मामले में पक्ष और विपक्ष दोनों की सभी दलीलों को सुना। ये सुनवाई सात दिनों तक चली और 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। 8 नवंबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित रिटायर हो रहे हैं, ऐसे में बेंच ने 7 नवंबर 2022 को अपना फैसला सुना दिया। यह फैसला हमेशा याद रखा जाएगा। इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा एस रवींद्र भट, दिनेश माहेश्वरी, जेबी पार्डीवाला और बेला एम त्रिवेदी शामिल थे।
तीन जजों ने संविधान के 103वें संशोधन अधिनियम 2019 को सही माना है। बेंच में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट्ट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला शामिल थे। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट ने ईडब्ल्यूएस को आरक्षण के फैसले पर असहमति जताई।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पक्ष अपनी सहमति जताई। उन्होंने कहा कि आर्थिक मानदंडों पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण समानता संहिता का उल्लंघन नहीं करता। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि वह जस्टिस माहेश्वरी के साथ सहमत हैं। सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस कोटा वैध और संवैधानिक है। जस्टिस जेबी पारदीवाला ने भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण का समर्थन किया।