भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर कोई भी पीड़ित व्यक्ति, संस्था, संगठन आदि अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिए अनुच्छेद 32 (1) के अंतर्गत सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा सकता है एवं न्यायालय के नाम से एक साधारण पत्र में माध्यम से भी अपने अधिकार की मांग कर सकता है। अब जानते हैं उच्चतम न्यायालय किस कब उस रिट याचिका पर आदेश, निर्देश आदि जारी करेगा।
भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 32(2) की परिभाषा
उच्चतम न्यायालय मूल अधिकारों का सजग प्रहरी है वह निदेश, आदेश एवं रिट के माध्यम से मूल अधिकारों के लिए एक ढाल का काम करता है। मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए ढाल का प्रयोग करना उच्चारण न्यायालय का कर्तव्य है और उच्चतम न्यायालय अपने इस कर्तव्य से किसी भी प्रकार से मुकर नहीं सकता है।
सुप्रीम कोर्ट यह कहकर किसी अनुतोष (राहत) से इनकार नहीं कर सकता है कि पीड़ित पक्ष के समक्ष अन्य उपचारिक वैकल्पिक उपलब्ध है। कुल-मिलाकर इस अनुच्छेद का सार यह है कि उच्चतम न्यायालय येन- केन-प्रकारेण नागरिकों के मूल अधिकारों की सुरक्षा करे एवं सुरक्षा, संरक्षण का सम्पूर्ण भार सुप्रीम कोर्ट के कंधों पर ही है।
नोट:- याद रहे हमने आपको अपने निरंतर लेखों से सभी प्रकार के मौलिक अधिकार एवं पांचो प्रकार की रिट याचिका बंदी-प्रत्यक्षीकरण,परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा एवं उत्प्रेषण रिटो की सम्पूर्ण जानकारी दे दी है।
Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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