राज्य सरकार जनता से वसूल किये गए कर का उपयोग किसी धार्मिक संस्थाओं में उत्थान एवं पोषण के लिए नहीं कर सकती है न ही धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए। अब सवाल है कि धार्मिक शिक्षा क्या है? धार्मिक शिक्षा एवं धर्म-विशेष की शिक्षा देना होता है। यह जन्म से उसी ईश्वर को आदि एवं अंत मानता है जिस धर्म के ईश्वर के प्रति व्यक्ति की इच्छा होती है।
नैतिक शिक्षा एवं धार्मिक शिक्षा में अंतर:-
नैतिक शिक्षा महापुरुषों के उपदेश, संदेश, आदर्श एवं जीवन परिचय धार्मिक शिक्षा नहीं है क्योंकि वह किसी धर्म विशेष का गुणगान नहीं करते हैं। वह तो महापुरुषों के जीवन का शाश्वत मूल्यों का चित्रण करते हैं। इसी प्रकार हम कह सकते हैं नैतिक शिक्षा, धार्मिक विशेष शिक्षा से अलग होती है। जानते हैं धर्म विशेष शिक्षा पर आम जनता का मौलिक अधिकार क्या है।
भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 28 की परिभाषा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 28 शिक्षण संस्थाओं में निम्न प्रकार धार्मिक शिक्षा व्यवस्था के अधिकार उपलब्ध कराने की बात करता है जानिए-
1. राज्य की निधि द्वारा पूर्ण रूप से आहार (पोषण) प्राप्त संस्थाएं धर्म विशेष की शिक्षा नहीं दी जा सकती है।
2. किसी ट्रस्ट अथवा विन्यास के अधीन स्थापित शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
3. कोई संस्थान जो राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त है या राज्य द्वारा सहायता प्राप्त शिक्षा संस्था हैं वह संरक्षको सहमति से धार्मिक शिक्षा ग्रहण करवा सकते हैं, अन्यथा नहीं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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