भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 एवं अनुच्छेद 226 के अंतर्गत नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट में याचिका लगा सकते हैं एवं इन्हीं दोनों न्यायालय में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की कार्यवाही होगी। यही उपबन्ध भारतीय संविधान करता है, लेकिन भारतीय संविधान में एक अनुच्छेद ऐसा भी है जो, किसी भी अन्य न्यायालय को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन (आरम्भ) करवाने का अधिकार देता है, जानिए कब।
भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 32(3) की परिभाषा
मौलिक अधिकारों को प्रवर्तन करवाने का अधिकार सिर्फ़ उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को ही प्राप्त है लेकिन संसद विधि (कानून) बनाकर उच्चतम न्यायालय की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह अधिकार किसी अन्य न्यायालय को भी दे सकती है।
"अन्य न्यायालय से अर्थ हाईकोर्ट के नीचे का कोई भी न्यायालय हो सकता है।'
साधारण शब्दों में कहे तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 (3) भारतीय संसद को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह मौलिक अधिकारों की याचिका की सुनवाई तत्सम परिस्थितियों में एक क़ानून बनाकर अन्य न्यायालय से करवा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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