दुनिया भर में नदियों ने कई सीमा विवाद सुलझाए हैं। मध्य प्रदेश की बेतवा नदी भी एक ऐसी ही नदी है। जिसे बुंदेलखंड की गंगा कहा जाता है। 480 किलोमीटर लंबी यह नदी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की प्राकृतिक सीमा रेखा है। लंबाई में तो यह नदी छोटी है परंतु बेतवा नदी घाटी की नागर सभ्यता लगभग पाँच हजार वर्ष पुरानी है।
यह नदी मध्य प्रदेश में भोपाल के दक्षिण पश्चिम में स्थित विंध्याचल पर्वत जो रायसेन जिले में आता है, से निकलती है। पश्चात भोपाल, ग्वालियर, झाँसी, औरैया और जालौन से होती हुई हमीरपुर के निकट यह यमुना नदी में मिल जाती है। इसके ऊपरी भाग में कई झरने मिलते हैं किन्तु झाँसी के निकट यह काँप के मैदान में धीमे-धीमें बहती है। इसके किनारे सांची और विदिशा के प्रसिद्ध व सांस्कृतिक नगर स्थित हैं।
भारत के इतिहास में यह नदी कितनी महत्वपूर्ण है इसका अनुमान सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत की जल सेना ने अपने एक युद्धपोत का नाम आईएनएस बेतवा रखा है। संस्कृत के महाकवि बाणभट्ट ने कादम्बरी और कालिदास ने मेघदूत में इसका उल्लेख किया है। कहते हैं कि बेतवा नदी के पानी में कुछ इस प्रकार के मिनरल्स मिले हुए हैं कि उसे नियमित रूप से पीने से टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस की बीमारी नहीं होती।
बारिश के दिनों में विभिन्न देशों से आने वाले तीन बरसाती नाले बेतवा नदी के उद्गम स्थान में आकर मिलते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यही बरसाती नाले बेतवा नदी का उद्गम है लेकिन गर्मी के मौसम में यह नाले सूख जाते हैं। तब बेतवा नदी के चमत्कारी उद्गम के दर्शन होते हैं। 1 मीटर व्यास का गड्ढा जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है। यही पूर्ण चंद्राकार बेतवा नदी का उद्गम है।