मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में 1100 साल प्राचीन दिव्य लक्ष्मी प्रतिमा स्थित है। यह मंदिर रानी दुर्गावती के दीवान आधार सिंह द्वारा आधार तालाब में बनवाया गया था। बताया गया है कि इस मंदिर की नींव में श्री यंत्र बना हुआ है। यानी पूरा मंदिर श्री यंत्र पर स्थित है।
जबलपुर के पचमठा मंदिर की कथा
आधार तालाब पर स्थित है लक्ष्मी माता का मंदिर जिसे पचमठा मंदिर मंदिर कहा जाता है, 16वीं से लेकर 18वीं शताब्दी तक पूरे भारतवर्ष में प्रख्यात रहा है। अमावस्या तिथि पर यहां देशभर से साधक आते थे और मंदिर परिसर में आठों पहर साधना चलती थी। आज भी अमावस्या के अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ लगती है और शुक्रवार को लोग मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना एवं संकल्प करने आते हैं। यहां के पुजारी बताते हैं कि यहां स्थापित प्रतिमा दिन में तीन बार रंग बदलती है। प्रात:काल में प्रतिमा सफेद, दोपहर में पीली और शाम को नीली हो जाती है।
इस प्राचीन और भव्य मंदिर का नाम पचमठा क्यों पड़ा
पचमठा मंदिर में श्री मुरलीधर व राधा जी की प्रतिमा विराजमान है। भगवान मुरलीधर की प्रतिमा स्वामी चतुर्भुजदास जी द्वारा भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (श्री राधाष्टमी महोत्सव) विक्रम संवत 1660 को स्थापित की गई थी। यह स्थान उसी समय से पचमठा' के नाम से प्रसिद्ध है।
मुगलों ने मंदिर पर हमला किया लेकिन प्रतिमा तक नहीं पहुंच पाए
कहा जाता है संवत 1687 के लगभग दिल्ली के बादशाह की सेना दक्षिणी राज्यों का दमन करने पहुंची तो अनेक चमत्कारों से श्री मुरलीधर युगल ने तोडफ़ोड़ से इस स्थान की रक्षा की। जब गुरुचरण गोस्वामी वृंदावन वल्लभ जी महाराज 1958 में जबलपुर पधारे तब इस स्थल का पुन: जीर्णोद्धार कराया। वैदिक पूजन का क्रम आज भी जारी है।