MP karmchari news- ट्रेजरी ऑफिसर को क्रमोन्नति रद्द करने का अधिकार है या नहीं, हाईकोर्ट ने पूछा

Bhopal Samachar
जबलपुर
। क्या संभागीय संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा किसी कर्मचारी की क्रमोन्नति का आदेश रद्द कर सकता है। क्या ट्रेजरी डिपार्टमेंट के ऑफिसर को क्रमोन्नति आदेश को रद्द करने का अधिकार है अथवा नहीं। इस सवाल का जवाब हाई कोर्ट में प्रस्तुत की गई याचिका के फैसले में मिलेगा। फिलहाल हाईकोर्ट ने रीवा संभाग के संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा और जिला शिक्षा अधिकारी को नोटिस जारी करके जवाब मांग लिया है।

स्कूल शिक्षा विभाग में क्रमोन्नति की गड़बड़ी का मामला

न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता रीवा निवासी शिव शंकर पांडे की ओर से अधिवक्ता शंकर प्रसाद सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता शासकीय विद्यालय में प्राचार्य रहते हुए सेवानिवृत्त हुआ था। शिक्षक के पद पर उसकी नियुक्ति 28 नवंबर, 1981 को हुई थी। नौ जून, 1988 को व्याख्याता के पद पर पदोन्नत किया गया। 31 जनवरी, 2018 को सेवानिवृत्त कर दिया गया। 

हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि क्रमोन्नति का लाभ दें

नियमानुसार तृतीय क्रमोन्नति का हकदार होने के बावजूद इस लाभ से वंचित रखा गया। इस रवैये के विरुद्ध अभ्यावेदन दिया गया। लेकिन विभाग ने उस पर विचार नहीं किया।लिहाजा, पूर्व में याचिका के जरिए हाई कोर्ट की शरण ली गई थी, हाई कोर्ट ने 30 अक्टूबर, 2021 को याचिका का इस निर्देश के साथ पटाक्षेप किया था कि जिला शिक्षा अधिकारी, रीवा एक जुलाई, 2014 से तृतीय क्रमोन्नति का लाभ प्रदान करें। 

संयुक्त संचालक कोष व लेखा ने जिला शिक्षा अधिकारी का आदेश रद्द कर दिया

जिला शिक्षा अधिकारी ने हाई कोर्ट के इस आदेश का पालन किया। लेकिन संभागीय संयुक्त संचालक कोष व लेखा, रीवा संभाग से 27 सितंबर, 2022 को आदेश पारित करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को तृतीय क्रमोन्नति का लाभ नहीं दिया जा सकता। इसलिए जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा पारित आदेश निरस्त किया जाता है। 

संयुक्त संचालक कोष व लेखा ने एकतरफा आदेश जारी किया

इसी रवैये के विरुद्ध नए सिरे से हाई कोर्ट आना पड़ा। दरअसल, संभागीय संयुक्त संचालक कोष व लेखा को जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा पारित आदेश को निरस्त करने का क्षेत्राधिकार नहीं था। इसके बावजूद याचिकाकर्ता को नैसर्गिक न्याय सिद्धांत के अनुरूप सुनवाई का अवसर दिए बिना उसके विरुद्ध आदेश पारित कर दिया गया।

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