हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला- सजा के लिए क्राइम का मोटिव अनिवार्य नहीं- MP NEWS

Bhopal Samachar
जबलपुर
। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। यह फैसला साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 को विस्तार देता है। यह डिसीजन जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस पीके गुप्ता की युगलपीठ ने सुनाया। 

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की डबल बेंच ने निर्धारित किया कि यदि कोर्ट में अभियोजन पक्ष अपराध का मोटिव सिद्ध करने में नाकाम रहता है लेकिन बाकी सभी साक्ष्य सिद्ध हो जाते हैं तो दंड निर्धारित करने के लिए पर्याप्त है। सिर्फ अपराध का इरादा साबित ना होने के कारण अपराधी को दोष मुक्त नहीं किया जा सकता। 

यह मामला माढ़ोताल थाना क्षेत्र में हुई एक हत्या का था। इसमें पुलिस ने अपनी इन्वेस्टिगेशन में रूममेट को दोषी बताया था। ट्रायल कोर्ट द्वारा उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को अपराधी पाते हुए दंड निर्धारित किया था परंतु उसकी ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई। 

हत्या का इरादा साबित नहीं हुआ फिर भी धारा 302 के तहत सजा 

अपीलकर्ता ने बताया कि उसकी सजा मुख्य रूप से 'अंतिम बार एक साथ देखे गए' के सिद्धांत पर आधारित है। आगे यह भी बताया कि अभियोजन पक्ष ने साक्ष्य अधिनियम की धारा-27 के तहत उसकी गवाही पर भी अधिक भरोसा किया था। अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि धारा-27 के तहत उसका बयान गिरफ्तारी से पहले दर्ज किया गया और इसलिए यह कानून की नजर में अस्वीकार्य था। साथ ही कहा कि अभियोजन पक्ष निचली अदालत के समक्ष हत्या का मकसद स्थापित करने में विफल रहा। दावा किया गया कि गवाहों के बयान कई विरोधाभास थे। इस प्रकार, यह प्रार्थना की गई कि उसकी दोषसिद्धि को रद्द किया जाए।

आरोपी के बयान के आधार पर उसी को सजा सुनाई गई

मध्यप्रदेश शासन की ओर से उपस्थित वकील ने माननीय न्यायालय को बताया कि ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को उसके पेश किए गए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर सही ढंग से विचार करने के बाद ही उसे दोषी ठहराया था। उसकी सजा परिस्थितिजन्य साक्ष्य के साथ साक्ष्य अधिनियम की धारा-27 के तहत उसके बयान पर आधारित थी। उसी ने पुलिस को बताया था कि शव कहां पर है और अन्य सामग्री जो एविडेंस के लिए जरूरी थी उसकी जानकारी भी दी थी। 

अपराध का उद्देश्य साबित होना महत्वपूर्ण लेकिन नियम नहीं

हाई कोर्ट ने कहा कि केवल मकसद की अनुपस्थिति अपीलकर्ता को दोषमुक्त नहीं कर सकती है, खासकर जब उसके खिलाफ परिस्थितियों की श्रृंखला स्थापित की गई हो। हमारे विचार में, परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामलों में मकसद का अस्तित्व निश्चित रूप से अधिक अर्थ और महत्व रखता है। हालांकि, एक नियम के रूप में, यह नहीं कहा जा सकता है कि किसी भी मामले में, मकसद के अभाव में आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

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