जबलपुर। भारत में डॉक्टर को भगवान कहा जाता है परंतु यदि डॉक्टर की डिग्री की बिक्री होने लग जाए। एमबीबीएस के स्टूडेंट्स को बिना परीक्षा दिए पास कर दिया जाए और यह सब कुछ सरकारी यूनिवर्सिटी में चल रहा हो तो क्या कहेंगे आप। इनके कारण मध्य प्रदेश से पास होकर जाने वाले अच्छे डॉक्टरों की की भी समाज में वैल्यू नहीं रहती।
मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी (आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय) काफी बदनाम हो गई है। नित नए खुलासे हो रहे हैं। आरोपों की जांच के लिए जस्टिस केके त्रिवेदी की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी का गठन किया गया था जिसमें साइबर क्राइम के एडीजी योगेश देशमुख, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुनील कुमार गुप्ता, सीनियर कंसलटेंट MPSEDC विरल त्रिपाठी व इंजीनियर टेस्टिंग AAPSEDC प्रियंक सोनी शामिल थे।
जस्टिस त्रिवेदी जांच कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट में सबमिट कर दी है। इसमें बताया गया है कि NRI कोटे से 13 स्टूडेंट्स को नियम विरुद्ध पास कर दिया गया है। उनके आंसर शीट में ओवरराइटिंग मिली है। यूनिवर्सिटी में रिवैल्युएशन का नियम ही नहीं है लेकिन इवैल्यूएशन में पास किया गया। लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं अधिवक्ता विशाल सिंह बघेल ने बताया कि मेडिकल यूनिवर्सिटी में परीक्षा परिणामों में अंकों के हेरफेर के मामले में एक याचिका हाईकोर्ट में लंबित है।
जांच में पाया गया कि 278 स्टूडेंट्स की जगह उनके सॉल्वर्स ने परीक्षा दी है। यानी फिल्म मुन्ना भाई वाला पैटर्न अपनाया गया। मुन्ना भाई घर पर कैरम खेल रहा था और उसकी जगह कोई दूसरा जीनियस परीक्षा दे रहा था। नियमों के बलात्कार की हद देखिए। प्रैक्टिकल में भी ग्रेस के नंबर दिए गए हैं। भाजपा विधायक अजय विश्नोई ने बताया कि सब कुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि यूनिवर्सिटी में नियमित कर्मचारी ही नहीं है। पूरी यूनिवर्सिटी आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे चल रही है।