बच्चे जब कक्षा 12 में पढ़ रहे होते हैं तब उनके पेरेंट्स उनके लिए कॉलेज और कोर्स की खोज शुरू कर देते हैं। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा टॉपर हो। उसका नाम मेरिट लिस्ट में आए। उसे दुनिया का सबसे अच्छा कॉलेज मिले और स्कॉलरशिप भी मिले, लेकिन वह जानते हैं कि उनके बच्चे की क्षमताएं और पढ़ाई के प्रति लगन कितनी है। इसलिए वह चुपके-चुपके ऐसे कॉलेज और कोर्स सर्च करते रहते हैं जो एवरेज स्टूडेंट्स के लिए ठीक हो।
MBBS कॉलेज में सीट नहीं मिली तो क्या विकल्प हो सकता है
जब बच्चा साइंस की पढ़ाई शुरू करता है तो हर माता-पिता उसके अंदर एक डॉक्टर देख रहा होता है परंतु कक्षा 11 और कक्षा 12 की पढ़ाई और टेस्ट रिपोर्ट के दौरान काफी कुछ बदल जाता है। NEET क्लियर नहीं कर पाते या फिर कुछ कमी रह जाती है तो दूसरे कई विकल्पों पर विचार किया जाता है। इनमें से एक विकल्प है दंत चिकित्सा। यानी डेंटल कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद बच्चा डेंटिस्ट बन जाएगा। उसके नाम के आगे भी डॉक्टर लग जाएगा। और फिर दांतों के डॉक्टर की कमाई भी तो अच्छी होती है।
क्या दंत चिकित्सा महाविद्यालय में एडमिशन लेना चाहिए
अपन मध्यप्रदेश की बात करते हैं। सन 2022 में एडमिशन क्लोज हो रहे हैं। मध्य प्रदेश में कुल 14 डेंटल कॉलेज हैं। इनकी 60% सीटें खाली पड़ी हुई है। यह स्थिति दो चरण की काउंसलिंग के बाद है। कुछ कॉलेज तो ऐसे हैं जिनमें 5 से कम स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिया है। पिछले कई सालों से औसत 50% सीटें खाली रह जाती हैं।
लोग डेंटल कॉलेज में एडमिशन क्यों नहीं लेते, डेंटिस्ट क्यों नहीं बनते
- डेंटिस्ट के लिए सरकारी नौकरी के अवसर सबसे कम है।
- जिला अस्पताल में केवल एक पद होता है।
- सिविल अस्पताल और सामुदायिक अस्पताल में तो विजिटिंग डॉक्टर का पद भी नहीं होता।
- प्राइवेट प्रैक्टिस में भी कंपटीशन बहुत ज्यादा है।
- डेंटल क्लीनिक खोलने में इन्वेस्टमेंट बहुत लगता है।
- डेंटिस्ट के पूरे कोर्स की पढ़ाई में 15 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हो जाते हैं।
आयुष मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. राकेश पांडे का कहना है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कारण आयुष चिकित्सकों को सरकारी नौकरी के अवसर ज्यादा मिल रहे हैं और फीस काफी काम है। इसलिए लोग डेंटल कॉलेज के बजाय आयुष कॉलेज में एडमिशन लेना पसंद कर रहे हैं।