दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 258 के अंतर्गत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की मंजूरी से कोई भी समन मामलो में अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आपराधिक कार्यवाही को रोक सकते हैं, चाहे उन मामलों में गवाही भी पूरी हो गई हो।
कोई भी अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट व्यक्ति को दोषमुक्त भी कर सकता है या इसे उन्मोचन (शर्तो के अनुसार छोड़ना जमानत पा) भी कर सकता है। क्या उपर्युक्त होने के बाद समन मामलों के अपराध का पुनः विचारण न्यायालय में किया जा सकता है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 300 की उपधारा 05 की परिभाषित
अगर किसी व्यक्ति को संहिता की धारा 258 के मामलो के अंतर्गत अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दोषमुक्त या उन्मोचित कर दिया गया है तब न्यायालय की सहमति से इसने उन्मोचन या दोषमुक्त का निर्णय दिया था उसकी सहमति से उन समन मामलो का पुनः विचारण किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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