राज्य सरकार के अधीन कार्य करने वाले मजिस्ट्रेट को कार्यपालक मजिस्ट्रेट कहते हैं। इनके अंतर्गत DM, SDM, तहसीलदार, नायाब तहसीलदार आते हैं एवं न्यायपालिका के अधीन कार्य करने वाले मजिस्ट्रेट न्यायिक मजिस्ट्रेट कहलाते हैं। जैसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, अपर जिला मजिस्ट्रेट, द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट आदि।
इन दोनों स्तंभों में न्यायपालिका सबसे ऊपर होती है क्योंकि कार्यपालक मजिस्ट्रेट को भी न्यायालय में साक्षी (गवाही) के लिए हाजिर होना पड़ता है। जानिए कब SDM अपनी जाँच रिपोर्ट न्यायालय में साक्ष्य के रूप में देगा एवं पीड़ित व्यक्ति या आरोपी के कहने पर न्यायालय में भी गवाही के लिए उपस्थित होगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 291(क) की परिभाषा
• कोई जांच रिपोर्ट जो किसी व्यक्ति से संबंधित है या किसी संपत्ति के मामले से सम्बंधित है, तब कार्यपालक मजिस्ट्रेट विचारण के समय या अन्य कार्यवाही के लिए न्यायालय को अपनी रिपोर्ट भेजेगा एवं एवं वह रिपोर्ट न्यायालय में साक्ष्य अभिलेख का भाग होगी।
• अगर कोई कार्यपालक मजिस्ट्रेट किसी संदिग्ध व्यक्ति, मारे गए व्यक्ति, गुम हुए व्यक्ति, फरार व्यक्ति या भगा दिए गए व्यक्ति की जाँच रिपोर्ट न्यायालय को सौपता है तो साक्ष्य अधिनियम,1872 के उपबन्धों के अनुसार देगे।
• न्यायालय अगर उचित समझता है और आरोपी या पीड़ित व्यक्ति आवेदन करता है कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट(DM, SDM, तहसीलदार आदि) को साक्षी के तौर पर न्यायालय में उपस्थित किया जाए तब कार्यपालक मजिस्ट्रेट को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 291(क) खण्ड 02 के अनुसार स्वयं गवाही के लिए उपस्थित होना होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com