कई बार न्यायालय का निर्णय आज आने के बाद स्पष्ट होता है कि इन्वेस्टिगेशन गलत दिशा में हुई थी और सही तरीके से चालान प्रस्तुत नहीं होने के कारण न्यायालय का निर्णय वैसा नहीं आया जैसा कि होना चाहिए था। तब क्या पुलिस के पास यह अधिकार है कि वह उसी केस में दूसरा चालान बनाकर प्रस्तुत कर दे। क्या ऐसा हो सकता है कि कोर्ट अपना पुराना फैसला स्थगित कर दें और नए आरोपपत्र पर नए सिरे से सुनवाई शुरू की जाए।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(1) क्या कहता है
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(1) आरोपी व्यक्ति को संरक्षण का अधिकार देता है। अगर व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध या दोषमुक्त कर दिया गया है तब उसे दोबारा उसी अपराध के लिए दण्डित नहीं किया जा सकता है। ऐसा करना असंवैधानिक होगा। उसी के संदर्भ में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 300 के अंतर्गत कुछ नियम बनाये गए हैं।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 300 की उपधारा 1 की परिभाषा
किसी भी व्यक्ति का किसी अधिकारिता रखने वाले न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी अपराध का एक बार विचारण हो गया है और उस विचारण में आरोपी को दोषमुक्त या दोषसिद्ध कर दिया गया है, तब उसी अपराध एवं उन्ही तथ्यों को लेकर दोबारा उस अपराध का विचारण नहीं किया जा सकता है।
उधानुसार अनुसार:- अगर किसी कर्मचारी पर चोरी का आरोप लगाया गया था और वह न्यायालय द्वारा दोषमुक्त कर दिया जाता है। तब संस्था या विभाग द्वारा उस कर्मचारी पर दोबारा उन्ही तथ्यों पर आपराधिक न्यासभंग (विश्वासघात) का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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