कानून कहता है कि किसी मामले में यदि कोर्ट एक बार डिसीजन दे देता है तो पुलिस उस केस में दोबारा से चालान प्रस्तुत नहीं कर सकती। न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सिर्फ अपील की जा सकती है, लेकिन कुछ मामलों में देखा जाता है कि कोर्ट में फैसला हो जाने के बावजूद केस की सुनवाई फिर से शुरू होती है। आइए जानते हैं कि यह कैसे हो सकता है:-
एक घटना की एक FIR होगी चाहे अपराधों की संख्या अधिक क्यों ना हो
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 220(1) कहती है कि अगर कोई व्यक्ति परस्पर संबंधित अपराध का आरोपी है, तो उनके अपराध का एक ही विचारण होगा अर्थात किसी व्यक्ति पर गालीगलौज (आईपीसी की धारा 294), धमकी देना (आईपीसी की धारा 506) एवं मारपीट करना (आईपीसी की धारा 323) के अंतर्गत आरोप लगा है तब सभी अपराध के आरोप का एक ही न्यायालय द्वारा एक ही समय में सुनवाई होगी।
ऐसे अपराध का विचारण पूर्ण होने के बाद राज्य सरकार चाहे तो उपर्युक्त सभी अपराधों का दोबारा से न्यायालय में विचारण करवा सकती है। तब भी, जब आरोपी दोषसिद्ध हो गया है या दोषमुक्त हो गया हो जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 300 की उपधारा (2) की परिभाषा
अगर किसी व्यक्ति पर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 220(1) के अंतर्गत अपराध का विचारण हो गया है ओर व्यक्ति दोषसिद्ध या दोषमुक्त कर दिया गया है तब ऐसे अपराध का पुनः पृथक (अलग-अलग) विचारण के लिए राज्य सरकार की अनुमति से धारा 300 की उपधारा(2) के अधीन अपराध का पुनः न्यायालय द्वारा विचारण किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com