भारत में ज्यादातर शाकाहारी लोग मसूर की दाल नहीं खाते और ज्यादातर मांसाहारी लोग मसूर की दाल खाना पसंद करते हैं। सवाल यह है कि मसूर की दाल में ऐसा क्या है जो शाकाहारी लोग पसंद नहीं करते और मांसाहारी लोगों को बहुत पसंद आता है। क्या मसूर की दाल नॉनवेज होती है। आइए समझने की कोशिश करते हैं:-
मसूर की दाल की कहानी
दरअसल, मसूर की दाल भारत के मैदानी इलाकों की फसल नहीं है। मसूर की दाल का उत्पादन हिंदूकुश पर्वत के मध्य क्षेत्र में माना जाता है। मिस्र, ग्रीस एवं इटली के लोगों द्वारा सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। स्वाभाविक है कि ऐसे सभी लोग मांसाहारी हैं। वह अपने मांसाहारी भोजन में मसूर की दाल का प्रयोग करते हैं। प्राचीन काल में मसूर की दाल बनाने की रेसिपी कुछ ऐसी थी जो नॉनवेज का स्वाद बढ़ाने में मदद करती थी। भारत में जब अफगान और मुगल आए तब वह अपने साथ काबुली चना और मसूर की दाल भी लाए। यह मुख्य कारण है, शाकाहारी लोगों ने मसूर की दाल से परहेज किया। जो निरंतर चला आ रहा है।
मसूर की दाल का वैज्ञानिक परिचय
मसूर को English में Lentil कहा जाता है। मसूर का वानस्पतिक नाम (Botanical Name) लेंस एस्कुलेंटा (Lense esculanta) है। जो कि फैमिली फैबेसी या leguminaceae का सदस्य है और अगर आप इसे ध्यान से देखेंगे तो आपको इसका आकार भी लेंस की तरह ही दिखाई देगा।
भारतीय ज्योतिष की मान्यता के कारण मसूर की दाल से परहेज
भारतीय ज्योतिष में खाद्य पदार्थों को भी ग्रहों का प्रतिनिधि माना गया है। प्राचीन काल में भारत में केवल तीन प्रकार की दाल की पैदावार हुआ करती थी। मूंग, चना और उड़द। अरहर की दाल का उत्पादन दक्षिण भारत में होता था। उत्तर भारत में ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार:-
- मूंग की दाल बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है, अतः इसे बुधवार को बनाया जाता है।
- चने की दाल बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है, अतः गुरुवार को बनाया जाता है।
- उड़द की दाल शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है अतः शनिवार को बनाया जाता है।
इस हिसाब से मसूर की दाल मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है। एक मान्यता है कि इसको खाने से मन में हिंसा का भाव पैदा होता है। इसलिए भी उत्तर भारत के शाकाहारी लोग मसूर की दाल नहीं खाते। वैज्ञानिक दृष्टि से मसूर की दाल पूरी तरह से शाकाहारी है और इसके जन्म स्थान के अलावा नॉनवेज से इसका कोई संबंध नहीं है।