जब किसी व्यक्ति पर गंभीर अपराध का आरोप लगता है तो उसे तुरंत पुलिस अपनी अभिरक्षा में लेती है एवं पूछताछ के लिए हवालात में बंद करके रखती है। हम फिल्मों में देखते हैं कि पुलिस ऑफिसर आरोपी को इतना मरते हैं की वह बेहोश तक हो जाता है, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होता है। क्या पुलिस अधिकारी द्वारा ऐसा करना क़ानून का उल्लंघन होता है या क्या कोई आरोपी पुलिस की मारपीट के कारण मर जाता है तो संविधान का उल्लंघन भी होगा। जानते हैं इन सबका जबाब।
परवत चन्द्र मोहंती बनाम उड़ीसा राज्य एवं एक और अन्य(निर्णय वर्ष 2021) :-
उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि अगर पुलिस अभिरक्षा में आरोपी व्यक्ति की मृत्यु पुलिस अधिकारी द्वारा मारपीट के कारण होती है तो यह कानून का उल्लंघन होगा एवं पुलिस अधिकारी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 के अंतर्गत अपराध कायम भी होगा एवं पुलिस अभिरक्षा में हिंसा और आरोपी की मृत्यु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का स्पष्ट उल्लंघन है। इसी प्रकार यशवंत और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019) में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया था कि पुलिस किसी भी आरोपी पर आवश्यकता से अधिक अत्याचार एवं मारपीट नहीं करेगी पुलिस आरोपी की स्वीकृति से ज्यादा अपराध के तथ्यों को साबित करने पर ध्यान देगी।
उपर्युक्त निर्णय द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि, पुलिस अभिरक्षा में मारपीट के कारण किसी की मृत्यु होती है तो इसका जिम्मेदार पुलिस अधिकारी होगा एवं मृतक आरोपी के परिवार वालों को राज्य सरकार द्वारा उचित प्रतिकर (राहत राशि) देना होगा। क्योंकि आरोपी व्यक्ति को अपराधी नहीं कह सकते हैं एवं यह संविधान के मौलिक अधिकार का उल्लंघन भी है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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