आपराधिक मामलों में, न्यायालय की प्रक्रिया के दौरान पीड़ित व्यक्ति का पक्ष रखने के लिए सरकार अपने खर्चे पर वकील खड़ा करती है। जबकि आरोपी को व्यक्तिगत खाते से वकील को फीस देनी पड़ती है। भारत के संविधान में कहा गया है कि जब तक दोष प्रमाणित नहीं हो जाता तब तक आरोपी व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जा सकता। सवाल यह है कि यदि न्याय की नजर में पीड़ित और आरोपी दोनों समान है तो फिर केवल पीड़ित व्यक्ति को ही सरकारी वकील क्यों मिलता है। क्या आरोपी व्यक्ति को भी सरकारी वकील मिल सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 304 की परिभाषा
1. जिला एवं सेशन न्यायालय के समक्ष किसी गंभीर अपराध की सुनवाई शुरू हो गई है एवं आरोपी के पास अपने बचाव (प्रतिरक्षा) के लिए कोई वकील नहीं है, वहाँ न्यायालय आरोपी को राज्य सरकार के खर्च पर उसकी प्रतिरक्षा के लिए वकील उपलब्ध करवाएगा।
2. राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से उच्च न्यायालय वकील के चयन संबंधित नियम बना सकता है।
3. राज्य सरकार को यह भी शक्ति प्राप्त है कि अन्य न्यायालय में भी आरोपी पक्ष को अपने खर्च पर वकील उपलब्ध करवा सकती है।
कुल मिलाकर आरोपी व्यक्ति को सरकार की तरफ से फ्री वकील इसलिए उपलब्ध नहीं कराया जाता क्योंकि सरकार की एजेंसी द्वारा की गई जांच में उसे दोषी पाया जाता है। सरकार न्यायालय में उसकी सजा का निर्धारण करने के लिए अपनी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। इसके बावजूद यदि आरोपी व्यक्ति निर्धन है, अथवा कोई भी प्राइवेट वकील उसका केस लड़ने के लिए तैयार नहीं है, ऐसी असामान्य परिस्थितियों में राज्य सरकार दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 304 के अंतर्गत वकील उपलब्ध कराती है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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