हमने आपको बताया था की दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 306(1) के अंतर्गत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को शक्ति प्राप्त है कि वह किसी भी सह आरोपी को जो संहिता की धारा 306(2) के अंतर्गत अन्वेषण, जाँच या विचारण पर है। इसकी आधार पर न्यायालय सह आरोपी को सरकारी गवाह बनाने का अधिकार भी रखता है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 306(4) की परिभाषा
यह धारा सह आरोपी को सरकारी गवाह के रूप में पेश करवाती है, अर्थात न्यायालय किसी भी सह आरोपी को गवाह के रूप में मानेगा जब वह उस अपराध के अन्वेषण, जांच, विचारण में घटित अपराध की सही सही जानकारी दे रहा हो। तब न्यायालय सह आरोपी को साक्षी के रूप में सरकारी गवाह बनाकर पेश करेगा न कि सह आरोपी के।
उदाहरण:- एक व्यक्ति के परिचित ने कोई अपराध किया और घटना के समय वह अपने परिचित के साथ था। उसने अपराध में परिचित का सहयोग नहीं किया लेकिन अपराध घटित हो जाने के बाद अपराधी परिचित व्यक्ति के साथ घटनास्थल से चला गया और पुलिस को सूचना नहीं दी। अपराधी के साथ कहीं जाकर छुप गया या फिर अपराधी को छुप जाने में मदद की। ऐसे व्यक्ति को पुलिस सह आरोपी मानती है परंतु यदि वह व्यक्ति न्याय की प्रक्रिया में मदद करे और सरकारी गवाह बन जाए तो उसे क्षमा किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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