मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिला अंतर्गत ओरछा में जमीन की खुदाई के दौरान 500 साल पुरानी 2 कॉलोनियां मिली हैं। इन कॉलोनियों में राज दरबार में काम करने वाले अधिकारी, वजीर और राजा के मंत्री रहा करते थे। भगवान श्री राम की राजा के रूप में प्रतिष्ठा के बाद सभी लोग टीकमगढ़ चले गए थे। ओरछा, झांसी उत्तर प्रदेश के नजदीक विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है।
जहांगीर महल के पास मंत्री और दरबारियों के लिए आवास बनाए गए थे
ओरछा में स्थित जहांगीर महल के दक्षिण क्षेत्र में खुदाई का काम किया जा रहा है। यहां 600 मीटर के इलाके में कई मकानों के अवशेष मिले हैं। पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि यहां पर कुल 2 कॉलोनियों के अवशेष मिले हैं। यहां उस जमाने के आलीशान मकान हुआ करते थे। बताया जा रहा है कि जमीन के भीतर मिलाया निर्माण लगभग 500 साल पुराना है। टेराकोटा और मिट्टी के बर्तन मिले हैं।
500 साल पहले यहां बड़ी व्यवस्थित टाउनशिप थी
सबसे सुखद अनुभूति यह है कि 500 साल पहले ओरछा में बड़ी ही व्यवस्थित टाउनशिप हुआ करती थी। राजा के मंत्री, वजीर और राज दरबार के अधिकारियों के निवास के लिए एक कॉलोनी बनाई गई थी। कहते हैं किसके कारण सब की सुरक्षा करना आसान होता था और राजकाज सुविधा पूर्वक संपन्न होता था।
ओरछा की स्थापना कब और किसने की थी
ओरछा की स्थापना 15वीं सदी में बुन्देला राजा रूद्र प्रताप सिंह ने की थी, ओरछा अपने राजा महल, रामराजा मंदिर, शीश महल, जहांगीर महल आदि के लिये प्रसिद्ध है। बुन्देला शासकों के दौरान ही ओरछा में बुन्देली स्थापत्य कला का विकास हुआ है। ओरछा में बुन्देली स्थापत्य के उदाहरण स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते है, जिसमें यहां की इमारतें, मंदिर, महल, बगीचे आदि शामिल है।
ओरछा का रामराजा मंदिर किसने और कब बनवाया
महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने रविवार 29 अप्रैल सन 1531 को ओरछा किले की नीव डाली गई और उसके कुछ माह पश्चात 1531 में ही एक चीता से गाय को बचाते समय उनकी मृत्यु हो गई। उसके पश्चात ओरछा का राज्य उनके जेष्ट पुत्र भारती चन्द्र ने संभाला और 1554 में पुत्रहीन वह स्वर्गवासी हो गये। फिर उनके छोटे भाई मधुकरशह ने राज्य की बागडोर संभाली और 1554 से 1592 तक मधुकारशाह ओरछा के राजा रहे। इसी काल में ओरछा में राम मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, चर्तुभुज मंदिर आदि का निर्माण हुआ।
राजा मधुकर शाह को ओरछा छोड़कर क्यों जाना पड़ा
लगभग 252 वर्ष तक ओरछा राजधानी रही और उसके बाद सन 1840 मे यहां से हटाकर टीकमगढ़ को राजधानी बनाया गया। कहते है कि भगवान श्रीराम ने अयोध्या से ओरछा आते समय महारानी कुंवर गणेश से यह शर्तानुसार तय कर लिया था कि जहां वे रहेंगे वहां कोई दूसरा राजा न रहेगा। इसलिये ओरछा में भगवान राम की मान्यता राम राजा के रूप है और राम की प्रतिष्ठापना भी ओरछा में मंदिर नही महारानी के अपने महल में ही है।