जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की विद्वान न्यायमूर्ति नंदिता दुबे ने एक पूर्व बैंक मैनेजर को पेंशन एवं एरियर्स का भुगतान करने के आदेश दिए हैं। इस बैंक मैनेजर को लोन के एक मामले में अनियमितता के चलते बर्खास्त कर दिया गया था। बाद में दया करते हुए उसे अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया था।
अनिंद कुमार सेन को अनियमितता के आरोप में बर्खास्त किया गया था
जबलपुर की यूनियन बैंक से अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त सीनियर मैनेजर अनिंद कुमार सेन की ओर से अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता जब ब्रांच मैनेजर था, तब उस पर एक लोन के प्रकरण में अनियमितता के आरोप लगाते हुए विभागीय जांच संस्थित की गई। इसके चलते उसे तीन दिसम्बर, 2009 को बर्खास्त कर दिया गया। उसकी अपील भी खारिज हो गई।
VRS के बाद बैंक ने पेंशन नहीं दी
तब उसने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष दया की अपील प्रस्तुत की। इस पर 17 दिसम्बर 2018 को उसकी बर्खास्तगी की सजा संशोधित कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति में तब्दील कर दी गई। इसके बाद उसने पेंशन का आवेदन दिया, जिसे निरस्त कर दिया गया। 2020 मे सरकार ने 1995 से 2010 के बीच अनिवार्य सेवानिवृत्त हुए लोगों के लिए पेंशन के दूसरे विकल्प की योजना लाई। याचिकाकर्ता ने इसके तहत आवेदन दिया, लेकिन उसे भी खारिज कर दिया गया। यह कहा गया कि योजना की अवधि के बाद उसकी सेवानिवृत्ति हुई।
अधिवक्ता मिश्रा ने तर्क दिया कि मूल रूप से बर्खास्तगी का दंड 3 दिसम्बर 2009 को दिया गया, इसे ही संशोधित कर 2018 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति किया गया। लिहाजा, अनिवार्य सेवानिवृत्ति 2009 से मानी जाएगी। सुनवाई के बाद कोर्ट ने तर्क स्वीकार कर याचिकाकर्ता के पक्ष में आदेश सुनाया।