भोपाल। मध्यप्रदेश की विधानसभा में कर्मचारियों की भर्ती में गड़बड़ी सामने आई है। आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया। पूरी भर्ती प्रक्रिया किसी अज्ञात एजेंसी के माध्यम से संचालित करवाई जा रही थी। विवाद उपस्थित हुआ तो भर्तियों को रद्द कर दिया गया लेकिन मंत्री के कोटे से की जाने वाली है कि भर्ती को रद्द नहीं किया गया है।
सरकारी नौकरी- विधानसभा सचिवालय भी गड़बड़ी कर रहा था
विधान सभा सचिवालय की ओर से 55 पदों के लिए विज्ञापन जारी हुआ था। दो लाख से ज्यादा उम्मीदवारों ने आवेदन किए थे। रिक्त पदों में सहायक ग्रेड-3 के 40, स्टेनो टाइपिस्ट के 2 और सिक्योरिटी गार्ड के 13 पद घोषित किए गए थे। इसी विधानसभा में तय हुआ था कि सरकारी नौकरियों में दिव्यांगों को 6% आरक्षण दिया जाएगा और इसी विधानसभा के सचिवालय ने अपनी भर्ती में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया। विवाद बढ़ जाने के बाद प्रमुख सचिव एपी सिंह ने अपनी गलती स्वीकार की और परीक्षा को रद्द करने की घोषणा कर दी। कहा है कि उम्मीदवारों को उनका आवेदन शुल्क वापस कर दिया जाएगा।
एक पद मंत्री के लिए आरक्षित, उसकी भर्ती रद्द नहीं की
विधानसभा सचिवालय ने सभी पदों पर भर्ती प्रक्रिया रद्द कर दी है परंतु एक पद 'संदर्भ सहायक' की भर्ती को रद्द नहीं किया गया है। इस पद पर एक मंत्री के कोटे से एक लड़की को नियुक्त किया जाना है। भर्ती विज्ञापन जारी करने से पहले इस लड़की को विधानसभा में 6 महीने की ट्रेनिंग करवाई गई और फिर विज्ञापन जारी किया गया जिसमें शर्त रखी गई कि उम्मीदवार को विधानसभा में 6 महीने की ट्रेनिंग जरूरी है।
अज्ञात एजेंसी से भर्ती कराई जा रही थी, नाम छुपा रहे अधिकारी
मप्र में सरकारी नौकरियों में पहली बार भर्तियां कर्मचारी चयन मंडल और पीएससी से कराए जाने के वजाए निजी एजेंसी से कराई जा रही थीं। एजेंसी का नाम भी उजागर नहीं किया था। मौखिक रूप से कह रहे थे कि जो एजेंसी भर्ती करेगी वह भारत सरकार का उपक्रम है। विज्ञापन हमेशा भर्ती कराने वाली एजेंसी जारी करती है परंतु यहां विधानसभा सचिवालय में जारी किया था।
दो लाख से ज्यादा उम्मीदवारों ने आवेदन किया था
2 लाख से ज्यादा उम्मीदवारों ने आवेदन जमा किए जिसमें एससी और एसटी के उम्मीदवारों से 300 रुपए अनारक्षित उम्मीदवारों से 450 रुपए फीस जमा कराई गई थी। हालांकि अधिकृत तौर पर ऑनलाइन आवेदकों की संख्या 35 हजार बताई जा रही है।