जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नर्मदा पुरम संभाग के कमिश्नर के एक आदेश को निरस्त कर दिया है और तहसीलदार को स्वतंत्र किया गया है कि वह उपस्थित मामले में अंतिम फैसला ले। उल्लेखनीय है कि एक भूमि विवाद में कमिश्नर ने तहसीलदार एवं एसडीएम के आदेश को निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट में कमिश्नर के आदेश को निरस्त कर दिया।
बैतूल का अर्जुन इरपाचे भूमि विवाद
न्यायमूर्ति द्वारकाधीश बंसल की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता बैतूल निवासी अर्जुन इरपाचे, रामजी लाल इरपाचे व रामदास इरपाचे की ओर से अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा, शिवम शर्मा व अमित स्थापक ने पक्ष रखा। जबकि अनावेदक क्रमांक आठ से 11 के लिए अधिवक्ता प्रतीक दुबे खड़े हुए। दलील दी गई कि याचिकाकर्ताओं ने अनावेदक क्रमांक आठ से 11 से भूमि क्रय की थी। यह भूमि अनावेदक क्रमांक आठ से 11 की पैतृक भूमि है। चूंकि कोई विवाद नहीं था, अत: रजिस्ट्री के बाद नामांतरण का आवेदन किया गया।
रिश्तेदारों ने आपत्ति दर्ज कराई, तहसीलदार और एसडीएम ने खारिज कर दी
इस दौरान अनावेदक क्रमांक छह से सात से आपत्ति दर्ज करा दी। दरअसल, भले ही अनावेदक क्रमांक छह से सात अनावेदक क्रमांक आठ से 11 के रिश्तेदार हैं, किंतु उनका क्रय की गई भूमि से कोई सरोकार नहीं है। इसके बावजूद परेशान करने की नीयत से आपत्ति दर्ज कराई। मामला तहसीलदार के समक्ष पहुंचा। उन्होंने याचिकाकर्ताओं व अनावेदक क्रमांक आठ से 11 के हक में आदेश पारित करते हुए अनावेदक क्रमांक छह से सात का आवेदन निरस्त कर दिया।
कमिश्नर ने गलत फैसला किया, हाईकोर्ट में निरस्त
इसके विरुद्ध अनावेदक छह से सात एसडीएम के समक्ष पहुंचे। वहां से भी उन्हें झटका लगा। लिहाजा, अतिरिक्त आयुक्त के समक्ष अपील की गई। जिन्होंने विवाद पर कोई ठोस निर्णय दिए बिना तहसीलदार व एसडीएम के पूर्व आदेश निरस्त कर दिये। इस वजह से भूमि त्रिशंकु अवस्था में अटक गई। इसीलिए हाई कोर्ट आना पड़ा।