राजनीति में यदि अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने की सबसे ज्यादा उदाहरण लिखे जाएं तो उसमें शायद दिग्विजय सिंह का नाम सबसे ज्यादा बार आएगा। कन्याकुमारी से पैदल चले, कभी जमीन पर सोए, कभी भूखे रहे। इस सबका इंपैक्ट भी दिखाई देने लगा था लेकिन फिर एक बयान दिया और सब कुछ फिनिश। पॉलिटिकल साइंस में विद्यार्थियों को सिखाया जाना चाहिए कि सब कुछ बनना लेकिन दिग्विजय सिंह कभी मत बनना।
दिग्विजय सिंह ने कब कब अपने पैर को कुल्हाड़ी से काटा
- मुख्यमंत्री रहते हुए ऐसी कानूनी कार्रवाईयों के लिए पुलिस पर दबाव डाला जिनमें क्षत्रिय समाज के लोग गिरफ्तार किए गए।
- सरकारी कर्मचारियों को न केवल वेतन भत्ते के लिए तड़पाया बल्कि ऐसे बयान दिए जिससे कर्मचारी समाज उनके खिलाफ हो गया।
- सड़क और बिजली के लिए परेशान जनता को कोई उम्मीद देने के बजाय यहां तक कह दिया कि चुनाव मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। नतीजा.... सब जानते हैं।
- राष्ट्रीय महासचिव रहते हुए जितने राज्यों का प्रभार मिला, लगभग सभी में अपने विरोधियों की संख्या लगातार बढ़ाई। नतीजा सभी राज्यों से प्रभार छीन लिया गया लिया गया।
- यह जानते हुए कि मंत्रिमंडल में कोई सरदार वल्लभभाई पटेल नहीं है, मालेगाव मामले में अनावश्यक इंटरेस्ट लिया और एक नई थ्योरी लोगों के सामने प्रस्तुत की। इसके कारण दिग्विजय सिंह की एक अलग ही छवि बन गई।
- ट्रोल आर्मी को उन्हीं के मंच पर जाकर तो जवाब नहीं दिया परंतु ऐसी गतिविधियों में शामिल हो गए जिसने दिग्विजय सिंह को मुख्यधारा से अलग करके एक वर्ग विशेष का नेता बना दिया।
- नर्मदा परिक्रमा के दौरान उम्मीद थी कि कम से कम बयानों में संतत्व और समभाव दिखाई देगा, परंतु ऐसा कुछ हुआ नहीं।
- कमलनाथ सरकार के सरकार्यवाह बन कर बैठ गए लेकिन सरकार को बचा नहीं पाए। ओवरकॉन्फिडेंस में रहे और ऑपरेशन लोटस के प्लान भी की जानकारी मिलने के बाद भी उसे इग्नोर किया।
- भारत जोड़ो यात्रा के कारण एक बार फिर छवि में सुधार हुआ था। राष्ट्रीय अध्यक्ष मामले में जो व्यवहार हुआ उसके बाद लोगों की काफी सहानुभूति बन गई थी। यात्रा के बाद फायदा भी मिलता है लेकिन हाय रे बयान। 3 लाइन के बयान ने 3000 किलोमीटर की यात्रा चौपट कर दी।
✔ इसी प्रकार की जानकारियों और समाचार के लिए कृपया यहां क्लिक करके हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें एवं यहां क्लिक करके हमारा टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करें। क्योंकि भोपाल समाचार के टेलीग्राम चैनल पर कुछ स्पेशल भी होता है।