आम बोलचाल की भाषा में कहा जाता है कि हर कालाकोट वकील नहीं होता और कोई भी व्यक्ति काला कोट पहनकर वकालत नहीं कर सकता, लेकिन पिछले कुछ दिनों में देखा गया है कि कई लोग काला कोट पहन कर खुद को वकील बताते हैं। उनमें से कुछ कोर्ट कैंपस में चले आते हैं और कुछ तो न्यायधीश के सामने वकालत करने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं। आइए जानते हैं कि कौन सा कानून एक व्यक्ति को वकील घोषित करता है और वकालत करने का अधिकार देता है एवं अनाधिकृत व्यक्ति यदि वकालत करने लगे तो उसके खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकती है।
वकालत करने का अधिकार किस कानून के तहत मिलता है
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की 29 से 33 यह बताती है वही व्यक्ति वकालत कर सकता है जिसका नाम राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में दर्ज हो या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे न्यायालय ने केस की पैरवी करने के लिए मंजूरी दे दी है। अधिनियम की धारा 33 स्पष्ट कहती है कि विधि व्यवसाय करने का अधिकार केवल वकीलों (बार काउंसिल में रजिस्टर्ड / सनद विधि स्नातक एवं विशेषज्ञ) को ही है।
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 45 की परिभाषा
कोई व्यक्ति किसी न्यायालय, किसी गैर न्यायिक विभाग, या किसी प्राधिकरण, अधिकारी के समक्ष स्वयं को अधिवक्ता बताता है या विधि व्यवसाय करता है जिसका नाम राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में नहीं है ऐसे व्यक्ति को छः माह की कारावास से दण्डित किया जा सकता है।
नोट:- बिना सनद के न्यायालय में वकील की यूनिफार्म में जाना या वकालत मात्र करना भी इस धारा के अंतर्गत दण्डनीय अपराध होता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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