सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 12 न्यायालय में अतिरिक्त वाद का वर्जन करती है अर्थात सिविल मामलों में व्यक्ति वाद पत्र में बाद में संशोधन नहीं कर सकता है। यह धारा आम नागरिकों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि जब कोई मामला अगर वह सिविल न्यायालय में दायर करते हैं तब वह सभी अभिवचनों को स्पष्ट लिखे एवं किसी भी बात को नहीं छोड़े क्योंकि सिविल मामलों में वही वाद इस आधार पर दोबारा दायर नहीं किया जाएगा कि वाद पत्र में कोई बात छूट गई थी या उसमे जोड़ा जाना है। आपराधिक मामलों की अगर बात करें तो उसमें परिवादी या फरियादी परिवाद या FIR में दर्ज धाराओं में परिवर्तन करवा सकते हैं या अतिरिक्त कथनों को जुड़वा सकते हैं।
नोट:-
• सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश क्रमांक 09 का नियम 09 के अनुसार किसी वादी की गैर हाजरी में मामला खारिज कर दिया गया है तब वह दोबारा कोई वाद दायर नहीं करेगा लेकिन वह न्यायालय के खारिज आदेश के विरुद्ध अपील कर सकता है।
• सीपीसी के आदेश 02 नियम 1 के अनुसार मामले में किसी भी वाद से संबंधित वाद के कारणों को नहीं छोड़ना चाहिए।
• सीपीसी के आदेश 23 नियम 3(क) अगर कोई व्यक्ति समझौता करके मामला खत्म कर देता है और डिक्री अपास्त हो जाती है तब वह व्यक्ति उस वाद को दोबारा दायर नहीं कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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