न्यायालय गंभीर मामलों में जांच, अन्वेषण या विचारण के दोरान सह आरोपियों को सरकारी गवाह बना सकता है एवं उनको अपराधी होने के बावजूद निर्धारित दंड से क्षमादान दे सकती है परंतु इसकी कुछ शर्ते होती है जैसे कि सह आरोपी, मुख्य आरोपी या घटित अपराध की सही एवं सुसंगति गवाही देगा, कोई झूठी कहनी नहीं बनाएगा आदि। अब प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि उसने क्षमादान प्राप्त करने के बाद निर्धारित शर्तों का उल्लंघन कर दिया, तब कोर्ट क्या करेगा। क्या ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए कोई कानून बनाया गया है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 308 की परिभाषा
• किसी सह आरोपी ने क्षमादान की शर्तों को पूरा कर लिया है ओर वह शर्तो का पालन नहीं करता है या मजिस्ट्रेट के समक्ष झूठा साक्ष्य देता है या घटित अपराध के बारे में जानबूझकर जानकारी छुपाता है, तब उच्च न्यायालय की अनुमति पर सह आरोपी को मिथ्या साक्ष्य देने के अपराध का विचारण शुरू किया जा सकता है।
Definition of section 308 of the Code of Criminal Procedure, 1973
• सह आरोपी को यह साबित करने का अधिकार भी होगा की उसने अपनी क्षमादान शर्तों का पालन किया है और था सरकारी गवाह पर अगर शर्तो के उल्लंघन का विचारण किया जा रहा है तो वह अपनी प्रतिरक्षा करने के लिए। अगर न्यायालय को लगता है कि सह आरोपी सही बोल रही है कि उसने क्षमादान की शर्तों का पालन किया है तब उसे दंड से मुक्त कर दिया जाएगा अगर सह आरोपी मिथ्या (झूठे) साक्ष्य दे रहा है तब उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 191 के अंतर्गत दोषसिद्ध किया जाएगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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