जब किसी न्यायालय के समक्ष किसी आपराधिक मामलों का विचारण चल रहा है, मामलों की सुनवाई दिन प्रतिदिन होती है। अगर किसी कारणवश किसी वकील, आरोपी या किसी अभियोजन पक्षकार को मामले के विचारण को कुछ समय के लिए रुकवाना है या स्थगित करवाना है तब वह किस कानून के अंतर्गत न्यायालय से आदेश लेगा जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 309 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में):-
यदि कोई न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान ले रहा है एवं अपराध का विचारण भी प्रारंभ कर दिया गया है। तब अगर कोई गंभीर परिस्थिति उत्पन्न होती है। तब न्यायालय मामले की सुनवाई को कुछ समय के लिए मुल्तवी या स्थगित कर सकता है।
• परन्तु जाँच या विचारण दण्ड प्रक्रिया संहिता,1860 की धारा 376 (क,ख, ग, आदि) बलात्संग के अधीन है तब आरोप पत्र (चालान) फाइल किए जाने की तारीख से दो मास की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा।
• सामान्य नियमों के अनुसार अगर आरोपी रिमाण्ड (प्रतिप्रेषण) में है तब न्यायालय जाँच या विचारण स्थगन का समय 15 दिनों के भीतर ही होगा क्योंकि आरोपी को 15 दिन से अधिक रिमाण्ड पर नहीं रखा जाएगा।
अगर कोई भी पक्षकार का साक्षी (गवाह) न्यायालय में साक्ष्य देने के लिए उपस्थित है एवं प्रतिपक्षी का वकील उपस्थित नहीं है या सुनवाई नहीं करना चाहता है तब न्यायालय इस आधार पर कार्यवाही को स्थगित नहीं करेगा, एवं साक्षियों के बयान लेगा एवं विचारण चालू रखेगा।
आरोपी के पसंद का वकील बीमार है तब क्या अन्य वकील द्वारा न्यायालय विचारण करवा सकता है:-
•हिमाचल सिंह बनाम मध्यप्रदेश राज्य:- उक्त मामले में विशेष न्यायाधीश के समक्ष आवेदन किया गया था कि अधिवक्ता बीमारी के कारण सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सकता है लेकिन न्यायालय ने अधिवक्ता के इस आवेदन को खारिज कर दिया एवं न्यायालय ने विचारण को प्रारम्भ रखा उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि किसी भी न्यायालय को यह अधिकार नहीं है कि यह आरोपियों की पसंद से भिन्न वकील नियोजित करने का आदेश करे और न्यायालय को मामले की सुनवाई स्थगित कर वकील को केस तैयार करने का समय देना चाहिए था। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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