जब किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाया जाता है तब पुलिस अन्वेषण के दौरान दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अधीन अभिलिखित बयान को न्यायालय का सारभूत साक्ष्य नहीं माना गया है।
उसके आधार पर किसी व्यक्ति को दोषसिद्ध या दोषमुक्त नहीं किया जा सकता है न्यायालय आरोपी को अपनी प्रतिरक्षा का पूरा अवसर देता है और अभियोजन पक्ष को अपराध साबित करने का है। दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 313 का उद्देश्य यह है की न्यायालय आरोपी से आरोप के बारे में स्वयं संवाद करे एवं अपराध के बारे में उसे बताये ताकि वह अपनी प्रतिरक्षा कर सके जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 313 की उपधारा 01 की परिभाषा:-
न्यायालय में प्रत्येक जाँच, विचारण(सुनवाई) में आरोपी व्यक्ति अपने विरूद्ध लगे आरोप की प्रतिरक्षा में स्वयं स्पष्टीकरण दे सकता है आर्थत स्वयं बचाव कर सकता है।
(क) न्यायालय में जब किसी मामले की जाँच या विचारण चल रहा है तब मजिस्ट्रेट आरोपी को बिना चेतावनी दिए आरोपी के बयान ले सकता है।
(ख) न्यायालय पीड़ित पक्षकार के साक्षियों की गवाही के बाद आरोपी से उसकी प्रतिरक्षा के लिए अवसर देगा।
साधारण शब्दों में कहे किसी जाँच, विचारण के समय बिना वकील के आरोपी अपनी प्रतिरक्षा कर सकता है, एवं न्यायालय को भी आरोपी से बचाव संबंधित प्रश्न पूछने की शक्ति प्राप्त है। इस धारा के अंतर्गत आरोपी से मौखिक प्रश्न एवं मौखिक बयान होंगे न की आरोपी से लिखित बयान लिए जाएंगे।
नोट:- परन्तु कोई व्यक्ति समन मामले का आरोपी है और उसे न्यायालय में व्यक्तिगत हाजिर होने से मुक्ति दे दी है तब उसे मौखिक बयान देने की आवश्यकता नहीं है वह लिखित में अपने वकील द्वारा बयान दे सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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