उच्चतम न्यायालय में अनुच्छेद 32 के अंतर्गत पाँच प्रकार की रिट जारी की जाती है एवं उच्च न्यायालय में भी अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उक्त पाँच रिटो के अलावा अन्य रिटो को जारी कर सकता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय तब जारी करता है जब किसी व्यक्ति को वेवजह या बिना ठोस कारण के पुलिस कस्टडी या जेल में रखा गया है। अगर ये रिट जारी होने के बाद भी व्यक्ति की रोककर रखा जाता है तब किस क़ानून के अंतर्गत अपराध सिद्ध होगा जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 345 की परिभाषा
कोई व्यक्ति जानबूझकर कर ऐसे व्यक्ति को परिरोध करके रखेगा जिसे छोड़ने के लिए न्यायालय द्वारा रिट आदेश निकल गया हैं, तब जबर्दस्ती परिरोध (रोककर) रखने वाला व्यक्ति उपर्युक्त धारा 345 के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 343 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान
यह किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है। यह संज्ञेय (गंभीर) एवं जमानतीय अपराध होते हैं अर्थात कोई पुलिस अधिकारी इस अपराध की रिपोर्ट दर्ज कर सकता है। इनकी सुनवाई प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।
सजा:- इस अपराध के लिए अधिकतम दो वर्ष की कारावास से दण्डित किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com