जब किसी व्यक्ति का अपहरण नहीं किया जाता। उसकी मुक्ति के बदले कोई मांग नहीं की जाती बल्कि किसी अन्य उद्देश्य से उस व्यक्ति को गवर्नमेंट ऑफिशल्स और उसके परिवार एवं रिश्तेदारों से कुछ समय के लिए छुपा कर रखा जाता है। इस प्रकार के अपराध को अपहरण नहीं कहा जा सकता। आइए जानते हैं कि इस प्रकार के अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता में क्या प्रावधान है।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 346 की परिभाषा
कोई व्यक्ति किसी को इस तरह जबर्दस्ती गुप्त स्थान पर परिरोध करके रखेगा, कि उस स्थान की जानकारी उसके किसी नातेदार या लोकसेवक को भी नहीं हैं या उस स्थान का पता भी उनको न चल पाए तब परिरोध करने वाला व्यक्ति उपर्युक्त धारा 346 के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 346 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान
यह अपराध दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 (1) के अंतर्गत समझौता योग्य है। यह संज्ञेय (गंभीर) एवं जमानतीय अपराध होते हैं अर्थात कोई पुलिस अधिकारी इस अपराध की रिपोर्ट दर्ज कर सकता है। इनकी सुनवाई प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। सजा:- इस अपराध के लिए अधिकतम दो वर्ष की कारावास से दण्डित किया जा सकता है।
नोट:- इस अपराध के लिए पुलिस थाने में अगर एफआईआर दर्ज नहीं होती है तो व्यक्ति स्वयं न्यायालय में परिवाद दायर कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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