जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगता है एवं आरोपी व्यक्ति को अपनी प्रतिरक्षा के लिए समय दिया जाता है। तब साक्ष्यों की एवं साक्षियों की आवश्यकता होती है, क्योंकि बिना साक्ष्यों एवं साक्षियों के स्वयं को निर्दोष प्रमाणित करना ज्यादातर मामलों में असंभव होता है। यही कारण है कि सीआरपीसी- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 315 आरोपी को स्वयं साक्षी का अधिकार देती है आर्थत आरोपी स्वयं अपने मामले में साक्षी भी हो सकता है, गवाही दे सकता है, जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 315 की परिभाषा (सरल एवं संक्षिप्त शब्दों में)
1. कोई भी व्यक्ति जिसके विरुद्ध दण्ड न्यायालय में कोई मामला विचारणधीन है वह स्वयं अपनी प्रतिरक्षा के लिए साक्षी होगा एवं अपने ऊपर लगे आरोपो को मिथ्या प्रमाणित करने के लिए शपथ द्वारा साक्ष्य देगा, परन्तु आरोपी को लिखित प्रार्थना देने पर ही साक्षी के रूप में बुलाया जाएगा।
(2) दण्ड न्यायालय में विचारणधीन दण्ड प्रक्रिया संहिता की :-
• धारा - 98(स्त्री को रोककर (निरूद्ध)रखना),
• धारा-107(लोक शान्ति भंग करना),
• धारा-108 ( राजद्रोहात्म बातो या अपवाह को फैलाना),
• धारा- 109 (संदिग्ध व्यक्ति को रोकना)
• धारा-110(अभ्यासिक अपराधी(आदतन) को शक पर गिरफ्तार करना),
• अध्याय 09 (भरण पोषण से सम्बंधित मामलों में धारा 125 से 128 तक)
• अध्याय - 10(लोक व्यवस्था एवं शांति बनाए रखने के लिए)
• ख-(धारा 133 से 143तक सार्वजनिक बाधा(लोक न्यूसेंस संबंधित),
• ग- (धारा 144 एवं 144क सार्वजनिक खतरे की संभावना होने पर)
• घ- (धारा 145 से 148 अचल संपत्ति के बारे में विवाद संबंधी) अपराध के आरोप में कार्यवाही के समय आरोपी स्वयं साक्षी होगा एवं स्वय को निर्दोष साबित कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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