जब किसी व्यक्ति को एक निश्चित समय के अनुसार रोककर रखा जाता है वहाँ पर सदोष परिरोध का अपराध होता है। यह अपराध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 340 में परिभाषित हैं किया गया है। किसी भी व्यक्ति को रोककर रखने के कई कारण हो सकते हैं और कारण के आधार पर ही अपराध का निर्धारण होता है। आज हम आपको बताएंगे कि यदि किसी व्यक्ति को जानकारी के उद्देश्य से रोक कर रखा जाता है तो क्या इसे अपराध माना जाएगा या नहीं।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 347 की परिभाषा:-
यदि कोई व्यक्ति नियम विरुद्ध जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी को रोक कर रखता है अथवा किसी संपत्ति की जानकारी प्राप्त करने अथवा किसी मूल्यवान दस्तावेज की जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति को रोककर रखता है तब इसे आईपीसी की धारा 347 के तहत अपराध माना जाएगा।
यदि कोई पुलिस अधिकारी किसी निर्दोष व्यक्ति को जिसे अपराध अथवा घटना के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है, बिना किसी उचित कारण के रोक कर रखता है तब उस पुलिस अधिकारी के खिलाफ भी आईपीसी की धारा 347 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया जाएगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 347 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान
यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है। यह संज्ञेय (गंभीर) एवं जमानतीय अपराध होते हैं अर्थात कोई पुलिस अधिकारी इस अपराध की रिपोर्ट दर्ज कर सकता है। इनकी सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। सजा:- इस अपराध के लिए अधिकतम तीन वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
नोट:- इस अपराध के लिए पुलिस थाने में अगर एफआईआर दर्ज नहीं होती है तो व्यक्ति स्वयं न्यायालय में परिवाद दायर कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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