भोपाल। लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा आउटपुट कंपनियों के माध्यम से शिक्षक एवं कर्मचारियों का नियोजन करके अधिकारियों को क्या व्यक्तिगत संतोष प्राप्त हुआ यह तो नहीं पता लेकिन आप तो सिस्टम सुधरा है और ना ही उल्लेखनीय परिणाम सामने आए हैं। उल्टा सरकार की किरकिरी अक्सर होती रहती है। चुनावी साल चल रहा है और आउटसोर्स कंपनियों ने व्यवसायिक शिक्षकों को पिछले 8 महीने से वेतन नहीं दिया।
काम करवाने DPI वाले सामने आ जाते हैं
व्यवसायिक शिक्षकों का कहना है कि लोक शिक्षण संचालनालय और उनकी नियोक्ता कंपनी के बीच में उनकी स्थिति फुटबॉल जैसी हो गई है। काम करवाने के लिए डीपीआई वाले सामने आ जाते हैं। वेतन के मामले में बात करना पसंद नहीं करते। कंपनी से वेतन मांगो तो कहती है कि डीपीआई वालों ने रोक रखा है। डीपीआई वालों से पूछो तो कमिश्नर कहते हैं कि मेरे पास क्यों आते हो। हमारा तुम्हारा क्या रिश्ता। सवाल यह है कि जब रिश्ता नहीं है तो काम क्यों करवाते हो। पैसा कंपनी को देते हो तो काम भी कंपनी से लिया करो।
शिक्षित बेरोजगारों की मजबूरी का कोई कितना फायदा उठा सकता है यदि देखना हो तो लोक शिक्षण संचालनालय और व्यवसायिक शिक्षकों के बीच के मामलों का अध्ययन करें। स्टूडेंट सरकार के, स्कूल सरकार का, निर्देश सरकार के, नियम सरकार के, आउटसोर्स कर्मचारियों को जो निर्देश देता है वह अधिकारी भी सरकारी है। नियुक्ति पत्र के अलावा सब कुछ सरकारी है। जब काम सरकार लेती है तो वेतन भी सरकार को ही देना चाहिए। डायरेक्ट नहीं दे सकते तो कंपनी से दिलाना चाहिए। डीपीआई का कमिश्नर अपनी जिम्मेदारी से कैसे बाहर सकता है।