Department of Agriculture, Madhya Pradesh (किसान कल्याण एवं कृषि विभाग) ने किसानों को शीतलहर एवं पाले से फसलों को बचाने की सलाह दी है तथा इसके उपाय भी बताये हैं।
सर्दी के मौसम में फसलों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है
उपसंचालक कृषि कल्याण एवं कृषि विकास डॉ. एस.के. निगम ने बताया कि अधिक सर्दी से फसलों की उत्पादकता पर विपरित असर पड़ता है और परिणामस्वरूप कम उत्पादन प्राप्त होता है। आने वाले समय में जाड़े का प्रकोप और बढ़ने वाला है। इसका असर दिखने भी लगा है। दिन-प्रतिदिन तापमान में कमी आ रही है। इसका प्रभाव फसलों पर पड़ता है। इसलिए सर्दी के मौसम में फसलों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
देखभाल नहीं की जाए तो फल या फूल झड़ सकते हैं
डॉ. निगम के मुताबिक शीतलहर व पाले से फसलों की उत्पादकता पर सीधा विपरित प्रभाव पड़ता है। फसलों में फूल और फल आने या उनके विकसित होते समय पाला पड़ने की सबसे ज्यादा संभावनाएं रहती हैं। पाला पड़ने के दौरान अगर फसल की देखभाल नहीं की जाए तो उस पर आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं। पाले की वजह से अधिकतर पौधों के फूलों के गिरने से पैदावार में कमी हो जाती है। उन्होंने कहा कि मटर, चना, अलसी, सरसों, आदि फसलों पर पाला पड़ने के दिन में ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है। जबकि अरहर, गन्ना, गेहूं व जौ पर पाले का असर कम दिखाई देता है।
पाले के असर को कम किया जा सकता है
उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास ने किसानों को सलाह देते हुए कहा है कि पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में मिट्टी की गुड़ाई या जुताई नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है। चूंकि सल्फर (गंधक) से पौधे में गर्मी बनती है अत: 6-8 किलोग्राम सल्फर डस्ट प्रति एकड़ के हिसाब से डाल सकते हैं या घुलनशील सल्फर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से पाले के असर को कम किया जा सकता है।
पाले और शीतलहर से फसल का बचाव होता है
उन्होंने बताया कि थोयोयूरिया 1 ग्राम आधा लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं और 15 दिनों के बाद छिड़काव को दोहराना चाहिए। दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की मेड़ों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल और जामुन आदि लगा देने चाहिए। इससे पाले और शीतलहर से फसल का बचाव होता है। सल्फर पौधों में रोगरोधिता बढ़ाने और फसल को जल्दी पकाने में भी सहायक होता है। सरसों, गेहूं, चावल, आलू और मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने के लिए सल्फर (गंधक) का छिड़काव करने से रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है और पाले से बचाव के अलावा पौधे को सल्फर तत्व भी मिल जाता है।
डॉ. निगम ने कहा कि पाला पड़ने की संभावना को देखते हुए जरूरत के हिसाब से खेत में हल्की-हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। साथ ही संभव हो तो मेढों पर धुआं किया जाये। इससे मिट्टी का तापमान कम नहीं होता है। जिससे फसलें पाले से सुरक्षित बनी रहती है।