जब आप किसी विधिक मामलो में फंस जाते हैं तो आपको ऐसी परेशानी से एकमात्र व्यक्ति ही बचाता है वो है वकील। इसी संदर्भ में उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है कि वकीलों का व्यवहार शिष्टाचार, अनुशासन एवं सरल स्वभाव का होना चाहिए उसको अपने मुवक्किल या परिवादी से हमेशा अच्छा व्यवहार करना चाहिए एवं पैसों का लालच नहीं करना चाहिए उसे आपने काम के प्रति हमेशा कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए क्योंकि वही ऐसा व्यक्ति होता है जो एक पीड़ित व्यक्ति या आरोपी को न्याय दिलवा सकता है।
गलत तरीके से विधि व्यवसाय करने वाले अधिवक्ता के खिलाफ कार्रवाई
अगर किसी अधिवक्ता का अपने क्लाइंट के प्रति व्यवहार ठीक नहीं है या कोई अधिवक्ता दुराचारण (बुरे व्यवहार) वाला है या ऐसा अधिवक्ता जो गलत तरीके से अपना व्यवसाय करता है, पैसों के लालच में आकर अपने मुवक्किल को परेशान करता है तब उसके खिलाफ क्या कार्यवाही होगी जानिए।
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 35 की परिभाषा
जब किसी शिकायत की प्राप्ति पर या अन्य किसी राज्य विधिज्ञ परिषद के पास यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उसकी नामावली का कोई वकील अपने व्यवसाय में या अन्य दुराचारण का दोषी रहा है तब बार की अनुशासन समिति निपटारे में लिए निम्न पर से निर्दिष्ट करेगी:-
1. बार अपनी अनुशासन समिति के समक्ष लंबित कार्यवाही को निपटारा करेगी।
2.बार अनुशासन समिति मामले की सुनवाई के लिए एक तारीख देगी एवं इसकी सूचना अधिवक्ता एवं राज्य के महाधिवक्ता को दिलवाएगी।
3.जब राज्य विधिज्ञ परिषद (बार) की अनुशासन समिति की कार्यवाही हो पूरी हो जाती है तब निम्न आदेश कर सकती है:-
(क). निर्दोष होने पर शिकायत को खारिज कर सकती है या बंद करवा सकती है।
(ख). दोषी होने पर अधिवक्ता को दण्ड दे सकती है।
(ग). अधिवक्ता को उतनी अवधि के लिए निलंबित कर सकती है जितनी वो ठीक समझे।
(घ). अधिवक्ता का नाम अधिवक्ताओं की राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली से हटा सकती है।
Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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