Code of Criminal Procedure, 1973 Section 160 के तहत पुलिस नोटिस जारी करके लोगों को बयान दर्ज करने के लिए बुलाती है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने इस विषय में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 160 के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को बयान दर्ज करने के लिए बुलाने का अधिकार नहीं रखती।
दिलीप अग्रवाल परिवार विरुद्ध इंदौर पुलिस मामला
उच्च न्यायालय के समक्ष इंदौर के दिलीप अग्रवाल ने इंदौर पुलिस के विरुद्ध याचिका प्रस्तुत की थी। बताया था कि इंदौर पुलिस ने उनके परिचित प्रद्युम्न की शिकायत के आधार पर दिलीप अग्रवाल, राधा अग्रवाल, देव्यानी और शिवम अग्रवाल को सीआरपीसी की धारा 160 के तहत नोटिस भेजकर बयान दर्ज करने के लिए बुलाया है। नोटिस में लिखा है कि यदि वह बयान दर्ज कराने उपस्थित नहीं हुए तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
विवाद का कारण क्या है
श्री दिलीप अग्रवाल ने न्यायालय को बताया कि उनके परिचित प्रद्युमन द्वारा दिलीप की बेटी के नाम से व्यापार शुरू किया था। दिलीप को बताया कि उनकी बेटी भाग्यशाली है। उसके नाम से व्यापार किया तो फायदा होगा। कंपनी से लेकर चल-अचल संपत्ति दिलीप की बेटी के नाम से खरीदी गई। लाॅकडाउन के वक्त व्यापार मंदा हो गया। चल-अचल संपत्ति हड़प लेने का आरोप लगाकर दिलीप व परिजन के खिलाफ शिकायत की गई। पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज किए बिना ही नोटिस जारी कर दिए थे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160- इंदौर हाई कोर्ट का फैसला
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने इंदौर पुलिस के नोटिस को रद्द करते हुए कहा कि जब तक FIR दर्द नहीं हो जाती तब तक किसी भी मामले में पूछताछ एवं बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती। सीआरपीसी की धारा 160 पुलिस को असीमित अधिकार नहीं देती बल्कि उसके अधिकारों को सीमित करती है।
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