भारत मौसम विज्ञान विभाग और दुनिया भर के तमाम मौसम वैज्ञानिकों के पास समुद्र और आसमान में चल रही हलचल का पता लगाने के लिए सेटेलाइट और कई दुर्लभ उपकरण होते हैं परंतु वराहमिहिर से लेकर अकबर के काल तक पूरी दुनिया में मनुष्य के पास कोई सेटेलाइट नहीं था बावजूद इसके घाघ भड्डरी ने ऐसी तकनीक विकसित की थी जिससे भारत का अनपढ़ किसान भी मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगा लिया करता था। आइए जानते हैं कि अनपढ़ किसानों को मौसम का विशेषज्ञ बनाने वाले घाघ भड्डरी कौन थे।
यह बिल्कुल निश्चित बात है कि बहुत सारे लोग घाघ भड्डरी को नहीं जानते होंगे। जो जानते हैं उनमें से भी बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि घाघ भड्डरी घाघ और भड्डरी दो अलग-अलग व्यक्ति है जो अलग-अलग समय में और भारत के अलग-अलग हिस्सों में पैदा हुए लेकिन दोनों की टेक्नोलॉजी इतनी मिलती-जुलती थी कि, प्राचीन भारत में इन दोनों की तकनीक को मिलाकर उपयोग किया जाता था और आज भी इन दोनों का नाम एक साथ लिया जाता है।
घाघ कौन थे और उनका असली नाम क्या था
घाघ का मूल नाम देवकली दुबे है। वह कन्नौज के रहने वाले थे और ज्योतिष शास्त्र के विशेषज्ञ थे। ज्योतिष के आधार पर ही उन्होंने मौसम का पूर्वानुमान लगाने की विधि ज्ञात कर ली थी परंतु उन्हें मालूम था कि, भारत के आम किसानों को ज्योतिष शास्त्र की भाषा में नहीं समझाया जा सकता इसलिए उन्होंने कहावतों के रूप में भारत के अनपढ़ किसानों को वह सिखा दिया जो आज भी मौसम विभाग के कई विशेषज्ञों को नहीं आता। उनकी इस विशेषज्ञता से खुश होकर अकबर ने उन्हें कन्नौज के पास जमीन और चौधरी की उपाधि प्रदान की थी। भारत के नक्शे पर 'अकबराबाद सराय घाघ' आज भी दिखाई देता है। यह सोलवीं शताब्दी की बात है।
16वीं शताब्दी में ही उत्तर प्रदेश और बिहार के इलाकों में भड्डरी काफी प्रसिद्ध हुए। वह भी ज्योतिष शास्त्र के विशेषज्ञ थे। उन्होंने भी कहावतों के रूप में लोगों को मौसम का पूर्वानुमान लगाना सिखा दिया था। कुछ कहावतों में ऐसा अनुमान भी लगता है कि घाघ सीनियर थे और भड्डरी उनके जूनियर या फिर दोनों किसी एक यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे और दोनों ने मिलकर एक ही प्रोजेक्ट पर काम किया था।
यही कारण है कि पूरे भारत में घाघ-भड्डरी की कहावतों को एक साथ अध्ययन किया जाता है और इन्हीं कहावतों के आधार पर आज सेटेलाइट के जमाने में भी मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है।
घाघ भड्डरी की मौसम का पूर्वानुमान लगाने की तकनीक - कहावतें
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
अर्थ: यदि शुक्रवार को आसमान पर बादल छा जाएं और शनिवार तक छाए रहे तो यह बिल्कुल निश्चित बात है कि वह बिना बरसे आगे नहीं बढ़ेंगे। अर्थात बारिश का होना सुनिश्चित है।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
अर्थ : यदि सावन के महीने में, कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र हो तो यह मान लेना चाहिए कि वर्षा सामान्य से कम होगी। इसके कारण अनाज महंगा हो जाएगा और बहुत कम लोग ही सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर पाएंगे।
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