समाज के 1 वर्ग की मान्यता होती है कि यदि किसी ने अपराध किया है तो उसे दंड मिलना ही चाहिए। हत्या एवं बलात्कार आदि गंभीर मामलों में ऐसा होता भी परंतु क्या सभी मामलों में ऐसा होता है। यदि कोई चोर, पीड़ित व्यक्ति के साथ समझौता कर ले तो क्या उसे सजा नहीं मिलेगी। कोर्ट, उस केस की फाइल को क्लोज कर देगा। आइए जानते हैं:-
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 378
चोरी अर्थात किसी भी व्यक्ति की चल संपत्ति की बेईमानी से उसकी मर्जी की बिना ले लेना है। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 378 में चोरी के अपराध को परिभाषित किया है। चोरी का अपराध पूर्ण होने के लिए पांच शर्तो का पूरा होना आवश्यक है:-
1. किसी संपत्ति की बेईमानी के उद्देश्य से लेना।
2. चल संपत्ति (एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने वाली) होना आवश्यक है।
3. वस्तु या चल संपत्ति किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे से हटाई गई हो।
4. संपत्ति को संपत्तिधारी की सहमति के बिना प्राप्त किया गया हो।
5. संपत्ति को उस स्थान से हटाया गया हो।
उपर्युक्त घटनाक्रम के होने पर चोरी का अपराध पूर्ण होता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 379
दण्ड:- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 379 में चोरी के अपराध के लिए दण्ड की व्यवस्था की गई है। यह अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय होते हैं। इनकी सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। सजा- इस अपराध के लिए अधिकतम तीन वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 378 का अपराध एक शमनीय अपराध है जानिए
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320 (1) के अनुसार किसी भी व्यक्ति की संपत्ति को उसकी मर्जी के बिना बेईमानी से प्राप्त करने का अपराध अर्थात चोरी का अपराध एक समझौता योग्य अपराध होता है। यह समझौता न्यायालय की बिना आज्ञा के उस व्यक्ति से किया जा सकता है, जिस व्यक्ति की संपत्ति को बेईमानी से चुराया गया है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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